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Chanakya Niti in Hindi: आचार्य चाणक्य मौर्य वंश के राजनीतिज्ञ गुरु थे. चाणक्य मुख्य रूप से दार्शनिक गुरु, राजनीति विशारद, महान अर्थशास्त्री और आचार-विचार के कूटनीतिज्ञ के रूप में प्रसिद्ध हैं. चाणक्य ने अपनी नीति में जीवन, व्यवसाय, सामाजिक जीवन, नैतिक आचरण, अर्थव्यवस्था आदि को लेकर कई बातें बताई हैं, जिसका अनुसरण करने पर व्यक्ति का जीवन सुखद और सफल बनता है.
बता दें कि चाणक्य का नाम विष्णुगुप्त था और इनके पिता का नाम चणक था. पिता के नाम के कारण ही ये चाणक्य कहलाएं. आचार्य चाणक्य चंद्रगुप्त मौर्च के महामंत्री, गुरु और संस्थापन भी थे. चाणक्य ने अपने सिद्धांतों से जो नीति बनाई थी वह आज के समय भी काफी सटीक बैठती है. आइये जानते हैं धन को लेकर चाणक्य अपनी नीति में क्या कहते हैं.
उपार्जितानां वित्तानां त्याग एव हि रक्षणाम्।
तडागोदरसंस्थानां परीस्रव इवाम्भसाम्।।
इस श्लोक के जरिए चाणक्य धन को लेकर कहते हैं कि, धन उपयोग करने की चीज है. इसलिए समय-समय पर इसका व्यय करना चाहिए. संतुलित मात्रा में धन का व्यय करने से धन की रक्षा होती है. धन की तुलना जल से करते हुए चाणक्य कहते हैं कि, जिस तरह पात्र में रखा जल यदि उपयोग न किया जाए तो वह खराब हो जाता है. ठीक ऐसे ही धन को प्रयोग न करने से उसका मूल्य भी समाप्त हो जाता है. आवश्यकता से अधिक धन संचित करना लाभकारी नहीं है. यदि अधिक धन है तो उसे दान-पुण्य के कामों में लगाएं.
अपनी कमाई किसी को न बताएं: कभी भी अपनी पूरी कमाई किसी को नहीं बतानी चाहिए. इसके अलावा भविष्य में यदि आपसे लेन-देन को लेकर कोई नुकसान हुआ हो तो वह भी किसी को नहीं बताएं. इन बातों को हमेशा गुप्त रखें, फिर चाहे कोई आपका कितना भी करीबी क्यों न हो. इस बातों को साझा करने से ना सिर्फ आर्थिक नुकसान होता है बल्कि मान-प्रतिष्ठा को भी ठेस पहुंचती है और व्यक्ति दुखों से घिर जाता है.
जरूरतों को रखें सीमित: धन को लेकर कभी कोई परेशानी न हो, इसके लिए आप धन खर्च में उचित संतुलन बनाकर रखें, धन को बहुत सोच-समझकर और जरूरत के लिए ही खर्च करें. जो लोग धन का खर्च सुरक्षा, दान और निवेश के तौर पर करते हैं वो सही तरीके से अपना जीवन यापन करते हैं.
कैसा धन अच्छा: कुछ लोग धन को केवल धन के रूप में ही देखते हैं. लेकिन चाणक्य कहते हैं कि, धन वही अच्छा होता है, जो मेहनत से कमाया गया हो. अनैतिक काम करने से यदि ज्यादा धन कमा लिया जाए तो वह टिकता नहीं है. ऐसे धन का भुगतान आगे चलकर किसी न किसी रूप में करना ही पड़ता है.
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