S&P Global ने कहा- भारत की GDP वृद्धि दर का अनुमान 6.8 फीसदी

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India GDP: ग्लोबल रेटिंग एंजेसी एसएंडपी ग्लोबल ने 25 नवंबर को अमेरिका में हुए राष्ट्रपति चुनाव के नतीजे आने के बाद एशिया-प्रशांत अर्थव्यवस्थाओं के लिए अपने आर्थिक अनुमान को अपडेट किया है. रेटिंग एजेंसी के अनुमान की मानें तो आने वाले फाइनेंशियल ईयर यानी वित्त वर्ष 2025-26 के लिए भारत की जीडीपी वृद्धि के अनुमान को घटाकर 6.7 फीसदी और वित्त वर्ष 2026-27 के लिए 6.8 फीसदी कर दिया है. हालांकि एसएंडपी ग्लोबल ने वित्त वर्ष 2024-25 में 6.8 फीसदी जीडीपी ग्रोथ का अपना पूर्वानुमान बरकरार रखा है.

रेटिंग एजेंसी ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा, “भारत में हम इस वित्त वर्ष में जीडीपी वृद्धि को 6.8 फीसदी तक घटते हुए देख रहे हैं.” एजेंसी का अनुमान है कि वित्त वर्ष 2027-28 में भारत की जीडीपी 7 फीसदी की दर से बढ़ेगी.

एसएंडपी की हालिया (Latest) रिपोर्ट में कहा गया है कि लगातार बढ़ती खाद्य महंगाई, भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की रेट की कटौती में बाधा बन रही है. रेटिंग एजेंसी को उम्मीद है कि केंद्रीय बैंक इस वित्त वर्ष 2023-24 में यानी 31 मार्च से पहले केवल एक बार ही अपने दर में कटौती करेगा.

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है, “कृषि आपूर्ति में कमी से उपभोक्ता महंगाई को बढ़ावा मिलता है, जिससे खाद्य की कीमतें बढ़ गई हैं और ये सभी जलवायु परिवर्तन पर निर्भर है इसलिए कुछ भी भविष्यवाणी करना अभी मुश्किल है कि खाद्य महंगाई कब थमेगी. फिलहाल खाद्य मुद्रास्फीति हाल ही में और भी अधिक अस्थिर हो गई है.”

RBI दर कटौती में खाद्य मुद्रास्फीति क्यों जरूरी?

एसएंडपी ने आरबीआई दर कटौती में खाद्य मुद्रास्फीति (Inflation) को जरूरी बताया है क्योंकि इसका मुद्रास्फीति में करीब 46 फीसदी योगदान रहता है जिससे दर कटौती में इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. एजेंसी के अनुसार, केंद्रीय बैंक शायद अपनी पॉलिसी रेट को बहुत तेजी कम न करके अलर्ट रहेंगे.

रिपोर्ट में गया गया है, “चीन के उपाय से विकास को बल मिलना चाहिए. हमें उम्मीद है कि निर्यात के लिए यूएस ट्रेड टैरिफ का चीन पर काफी असर पड़ेगा. कुल मिलाकर एंजेसी को 2025 में 4.1 फीसदी और 2026 में 3.8 फीसदी जीडीपी वृद्धि का अनुमान है. हालांकि यह सितंबर के पूर्वानुमान से 0.2 फीसदी अंक (पीपीटी) और 0.7 पीपीटी कम है.

एजेंसी ने रिपोर्ट में यह भी कहा कि धीमी वैश्विक मांग और यूएस ट्रेड नीति से एशिया-प्रशांत के विकास में रुकावट जारी रहेगी लेकिन कम ब्याज दर और मुद्रास्फीति से खर्च करने की क्षमता पर उनका दबाव कम होना चाहिए. वहीं उभरते बाजारों में मजबूत घरेलू मांग जीडीपी वृद्धि को बढ़ावा देगी.

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