Osho: ओशो का जन्मदिन 11 दिसंबर को, जानिए आचार्य रजनीश के बारे में रोचक बातें

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Osho Birthday: आचार्य रजनीश जिन्हें दुनिया ‘ओशो’ के नाम से जानती है. हालांकि जन्म के समय इनका नाम चंद्रमोहन जैन था. इनका जन्म 11 दिसंबर 1931 में मध्य प्रदेश के गांव कुंचवाड़ा में हुआ था. 21 वर्ष की आयु में इन्हें मौलश्री वृक्ष के नीचे प्रबोध प्राप्त हुई.

ओशो ने जीवन में कई उपलब्धियां और प्रसिद्धि हासिल की. लेकिन इनका जीवन विवादों से भी भरा रहा. 70-80 के दशक में ये दुनियाभर में लोकप्रियता हासिल कर चुके थे और शिखर पर थे. ओशो के प्रति लोगों की आस्था इस कदर बढ़ गई कि लोग इन्हें अब ओशो या रजनीश नहीं बल्कि भगवान श्री रजनीश से संबोधन करने लगे. हालांकि बाद में इन्होंने अपना नाम ओशो कर लिया. आइये जानते हैं ओशो के जीवन से जुड़ी ऐसी रोचक बातें, जो शायद आप नहीं जानते होंगे.

  • आचार्य रजनीश या ओशो के तीन गुरु मग्गा बाबा, पागल बाबा और मस्तो बाबा थे. कहा जाता है कि, इन्होंने ही ओशो को आध्यात्म की ओर खींचा जिस कारण उन्हें अपने पिछले जन्म से जुड़ी बातें याद आई.
  • आचार्य रजनीश के पिछले जन्म को लेकर यह भी कहा जाता है कि, अपने पिछले जन्म में वे 21 दिनों के कठिन उपवास पर थे, जिसे पूरा होने में तीन दिन शेष था. लेकिन इससे पहले ही उनकी हत्या कर दी गई थी. इन तीन दिनों के उपवास को उन्होंने इस जन्म में पूरा किया और जन्म के समय तीन दिन तक उन्होंने कुछ भी नहीं पिया. इतना ही नहीं जन्म लेने के बाद तीन दिन तक वे न रोएं और न ही हंसे. जैसे ही तीन दिन पूरे हुए ओशो ने रोना शुरू किया. इस बात का जिक्र ओशो ने अपनी किताब ‘स्वर्णिम बचपन की यादें’ में किया है.
  • कहा जाता है कि, पिछले जन्म में ओशो की एक प्रमिका भी थी, जिसका तस्वीर वो अपने बटुए में रखा करते थे. लेकिन असमय उनकी प्रेमिका की मौत हो गई और इसके बाद ओशो ने बांसुरी बजाना छोड़ दिया. उन्हें उनकी पिछले जन्म की प्रेमिका इस जन्म में मिली, जोकि जर्मन के पुना से आई. इसे मां प्रेम निर्वाणा का नाम दिया गया.
  • ओशो की जन्मकुंडली जब ज्योतिष को दिखाई गई तो ज्योतिष ने कहा कि, यह बालक केवल 7 वर्ष तक ही जीवित रह पाएगा और यदि यह इससे अधिक जीवित रहता है तो महान व्यक्ति या संत बन जाएगा.
  • ओशो ने कई किताबें लिखीं, लेकिन उन्होंने कहानी, कविता और पत्रों के अलावा कुछ नहीं लिखा. बाजार में भी उपलब्ध किताबें ओशो द्वारा कहे प्रवचनों का ही लिपिबद्ध है. ओशो अन्य पारंपरिक संत-संन्यासियों और आध्यात्मिक गुरुओं से थोड़ा अलग थे. वे न तो रामायण या महाभारत का पाठ कराते थे, ना ही व्रत-पूजन या यज्ञ जैसे कर्मकांड करने को कहते थे और ना ही रत्न या चूरण बेचते थे. उनके प्रवचन स्वर्ग-नरक और अंधविश्वासों पर हुआ करते थे.

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