Chhath Puja 2023: कब से मनाया जा रहा है छठ पर्व, रामायण और महाभारत काल से जुड़ा है इसका रोचक इत

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Chhath Puja 2023 Significance and History in Hindi: हिंदू धर्म में वैसे तो सालभर कई व्रत-त्योहार पड़ते हैं. लेकिन कार्तिक माह में पड़ने वाले छठ पर्व का विशेष महत्व होता है. इस साल छठ पर्व की शुरुआत 17 नवंबर को नहाय खाय के साथ हो चुकी है और 20 नवंबर 2023 को ऊषा अर्घ्य के साथ इसका समापन होगा.

छठ पर्व प्रकृति, उषा, वायु, जल और देवी षष्ठी को समर्पित होता है. इसमें सूर्य देव की उपासना की जाती है. छठ पर्व को भारत के एक बड़े भूभाग जैसे बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है.

बता दें कि, छठ पर्व साल में दो बार (चैत्र और कार्तिक माह) मनाया जाता है. छठ भले ही बिहार का प्रमुख और लोकप्रिय त्योहार है, लेकिन इस पर्व को लेकर आस्था देशभर में देखने को मिलती है. इसलिए इसे भारत समेत विदेशों में भी भारतीय मूल के लोग मनाते हैं.

यदि बात करें लोक आस्था के महापर्व छठ के इतिहास के बारे में तो, छठ पर्व का इतिहास बेहद रोचक होने के साथ ही सतयुग और त्रेतायुग के समय से जुड़ा हुआ है. छठ पर्व के इतिहास को लेकर कई पौराणिक कथाएं व मान्यताएं प्रचलित हैं. आइये जानते हैं इसके बारे में.

रामजी और सीता ने रखे थे छठ व्रत

छठ पर्व का इतिहास रामायण काल यानी त्रेतायुग से जुड़ा हुआ है. पौराणिक कथाओं के अनुसार, रामजी और माता सीता जब 14 साल का वनवास पूरा कर अयोध्या लौटे थे तब रामजी ने रावण वध के पाप से मुक्त होने के लिए ऋषि-मुनियों के आदेश पर राजसूय यज्ञ कराया था. मुग्दल ऋषि ने रामजी और माता सीता को यज्ञ के लिए अपने आश्रम में बुलाया. मुग्दल ऋषि के कहने पर माता सीता ने कार्तिक शुक्ल की षष्ठी तिथि को सूर्यदेव की उपासना की और व्रत रखे. इसके बाद माता सीता और रामजी दोनों ने पूरे छह दिनों तक मुग्दल ऋषि के आश्रम में रहकर पूजा-पाठ किए. इसलिए छठ पर्व की शुरुआत रामायण काल से मानी जाती है.

महाभारत काल छठ पर्व का संबंध

रामायण के साथ ही महाभारत ग्रंथ में भी छठ पर्व के महत्व के बारे में बताया गया है. इसके अनुसार, पांडव जब अपना राजपाट जुए में हार गए थे तब द्रौपदी ने छठ व्रत किया था. छठ व्रत के प्रभाव और सूर्यदेव की कृपा से ही पांडवों को राजपाट फिर से वापस मिल पाया.

श्रीकृष्ण पुत्र सांब का छठ व्रत से संबंध

कहा जाता है कि, श्रीकृष्ण और जामवंती के पुत्र सांब को कुष्ठ रोगी होने का श्राप मिला था. इस श्राप से उन्हें मुक्ति पाने के लिए नाराद जी ने 12 सूर्य मंदिर के निर्माण कराने का उपाय बताया. इसके बाद सांब ने उलार्क (उलार), लोलार्क, औंगार्क, कोणार्क, देवार्त समेत 12 स्थानों पर सूर्य मंदिरों का निर्माण कराया और उलार के तालाब में पूरे सवा माह स्नानकर सूर्यदेव की उपासना की. भगवान भास्कर की कृपा से सांब कुष्ठ रोग के श्राप से मुक्त हो गए. आज भी सांब द्वारा बनवाए विश्व प्रसिद्ध उलार सूर्य मंदिर में हर साल छठ पूजा का अयोजन होता है.

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