Ayodhya Sarayu Nadi: श्रीराम के जन्म से वनगमन और बैकुंठ गमन की साक्षी है ‘सरयू’, जानिए इसका रोच

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Ayodhya Sarayu Nadi: विविधताओं से भरे देश भारत में अनेकों पहाड़, झरने और नदियां हैं, जो खूबसूरती को समेटे हुए हैं. लेकिन बात करें नदियों की तो भारत को नदियों की भूमि कहा जाता है. यहां छोटी-बड़ी लगभग 200 नदियां हैं. इनमें से कई नदियां तो पवित्र और पूजनीय मानी जाती है, जिनमें स्नान करना पवित्र और पुण्यफलदायी होता है.

ऐसी कई नदियां हैं जिनका इतिहास काफी पुराना और रोचक है. गंगा, यमुना, गोदावरी, नर्मदा जैसी पवित्र नदियों का देश में विशेष स्थान है. वहीं बात करें सरयू नदी की तो, यह नदी श्रीराम के वनवास काल से लेकर उनके अयोध्या वापसी की साक्षी रही है. ऐसे में राम की नगरी अयोध्या के चरण पखारने वाली सरयू नदी वर्णन ना हो तो अयोध्या की गाथा अधूरी रह जाएगी क्योंकि सरयू श्रीराम के जन्म से वनगमन और बैकुंठ गमन की साक्षी रही है. इसलिए तो सरयू का नाम सुनते ही मन में राम नगरी की छवि बन जाती है.

रामजन्मभूमि अयोध्या में बने भव्य राम मंदिर को लेकर चारों ओर चर्चा है. लेकिन सरयू नदी की बात न की जाए तो अयोध्या की कहानी संपन्न नहीं होगी. आइये जानते हैं प्रभु श्रीराम की अयोध्या में बहने वाली सरयू नदी की कहानी, इतिहास इसके उद्गम की कहानी.

वेद-पुराण में सरयू का उल्लेख

  • रामायण काल में सरयू कोसल जनपद की प्रमुख नदी थी. वहीं महाभारत के भीष्मपर्व में भी सरयू नाम का उल्लेख मिलता है. इसे ब्रह्मचारिणी बताया गया है. रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास जी ने सरयू की महिमा का बखान करते हुए लिखा है- अवधपुरी मम पुरी सुहावनि। उत्तर दिशा बह सरयू पावनि।। इस चौपाई के जरिए तुलसीदास जी ने सरयू नदी को अयोध्या की प्रमुख पहचान के रूप में प्रस्तुत किया है.
  • पद्मपुराण के उत्तरखंड में सरयू नदी की महिमा का बखान किया गया है. महर्षि पाणिनि ने अपनी पुस्तक अष्टाध्यायी में सरयू नदी का उल्लेख किया है. वहीं लोकभाषा में सरयू नदी को लेकर ऐसा कहा जाता है कि, सरयू में नित दूध बहत है मूरख जाने पानी. इसका अर्थ है कि, पावन सरयू नदी में निरंतर दूध के समान अमृत बह रहा है, जिसे मूर्ख लोग पानी समझते हैं.
  • वामन पुराण के 13वें अध्याय, ब्रह्म पुराण के 19वें अध्याय और वायुपुराण के 45वें अध्याय में गंगा, यमुना, गोमती, सरयू और शारदा आदि नदियों का हिमालय से प्रवाहित होना बताया गया है.

कैसे हुआ सरयू नदी का उद्गम

सरयू वैदिक कालीन नदी है, जिसका उल्लेख ऋग्वेद में भी मिलता है. पुराणों में वर्णित है कि, सरयू भगवान विष्णु के नेत्रों से प्रगट हुई. कहा जाता है कि इस पवित्र नदी का उद्गम भगवान विष्णु के आंसू से हुआ है. आनंद रामायण के यात्रा कांड के अनुसार, प्राचीनकाल में शंकासुर दैत्य ने वेद को चुराकर समुद्र में डाल दिया था और खुद भी वहां जाकर छिप गया. तब भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार धारण कर दैत्य का वध किया और ब्रह्मा को वेद सौंपकर अपने वास्तविक रूप में आ गए

उस समय हर्ष से भगवान विष्णु की आंखों से प्रेमाश्रु टपक पड़े. ब्रह्मा ने विष्णु जी के उस प्रेमाश्रु को मानसरोवर में डालकर उसे सुरक्षित कर लिया. इस जल को महापराक्रमी वैवस्वत महाराज ने बाण के प्रहार से मानसरोवर से बाहर निकाला. यही जलधारा सरयू नदी कहलाई. मत्स्यपुराण के अध्याय 121 और वाल्मीकि रामायण के 24वें सर्ग में इस नदी का वर्णन है.

सरयू नदी का इतिहास (History Of Sarayu River)

सरयू नदी वास्तव में शारदा नदी की ही सहायक नदी है. इसे सरयू या सरजू नदी भी कहा जाता है. सरयू नदी उत्तराखंड के शारदा नदी से अलग होकर उत्तर प्रदेश के जरिए अपना प्रवाह जारी रखती है. यह मुख्य रूप से हिमालय की तलहटी से निकलती है और शारदा की सहायक नदी बन जाती है. बात करें सरयू नदी के इतिहास की तो, इसका उल्लेख प्राचीन हिंदू धर्म शास्त्रों, वेद और रामायण में भी मिलता है. सरयू गंगा की सात सहायक नदियों में एक है. सरयू नदी की पवित्रता ऐसी है कि, इसमें स्नान करने से मनुष्य की अशुद्धियां नष्ट हो जाती है.

त्रेतायुग में भगवान श्रीराम का जन्म स्थान और राज्य की राजधानी अयोध्या सरयू तट पर स्थित है. ऐसा कहा जाता है कि, भगवान श्रीराम की बाल लीला के दर्शन के लिए ही सरयू का आगमन धरती पर त्रेतायुग से पहले हुआ था. इस तरह से यह नदी न केवल अयोध्या बल्कि संपूर्ण भारत के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण मानी जाती है.

अयोध्या की पहचान है सरयू

पुराण और रामायण के अनुसार, सरयू का आगमन त्रेतायुग से पहले बताया गया है. वहीं वर्तमान में भी यह नदी करोड़ों लोगों की आस्था का केंद्र है. विशेष अवसरों पर श्रद्धालु इस नदी में स्नान करते हैं. साधु-संतों व तपस्वियों के लिए भी सरयू पूजनीय है.

सरयू नदी से जुड़े रोचक तथ्य








बौद्ध ग्रंथों में सरयू नदी को सरभ के नाम से जाना जाता है.
ऋग्वेद में इंद्र द्वारा दो आर्यों के वध की कथा में जिस नदी के तट पर इस घटना के होने का वर्णन है वह सरयू है.
रामायण में वर्णित है कि, सरयू अयोध्या से होकर बहती है जिसे दशरथ की राजधानी और राम की जन्भूमि माना जाता है.
इतिहासविद् कनिंघम ने अपने एक मानचित्र पर सरयू को मेगस्थनीज द्वारा वर्णित सोलोमत्तिस नदी के रूप में चिन्हित किया है.
सरयू नदी का नाम संस्कृत भाषा से लिया गया है. इस नदी की लंबाई 350 किमी और स्रोत की ऊंचाई 4150 है.

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