डार्क पैटर्न पर रोक से कंपनियों में हड़कंप, जानिए कैसे प्रभावित होंगे आप और मार्केट

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Impact of Ban on Dark Pattern: सरकार ने ग्राहकों के हितों की रक्षा के लिए देश में डार्क पैटर्न के इस्तेमाल पर रोक लगा दी है. इससे ग्राहकों को बहुत फायदा होगा. मगर, ई-कॉमर्स कंपनियों के लिए समस्या खड़ी हो गई है. नई गाइडलाइंस के मुताबिक, ग्राहकों को गुमराह करने वाले विज्ञापन अब नहीं दिखाई देंगे. साथ ही ऐसी कोई स्कीम भी ग्राहकों के सामने पेश नहीं जाएगी, जिसमें बाद में नियम एवं शर्तें बदल दी जाएं. नए नियमों में 10 लाख रुपये जुर्माने का प्रावधान भी है. चूंकि, यह निर्देश बहुत बड़ी इंडस्ट्री पर लागू हो रहा है, इसलिए इसके असर भी बहुत व्यापक होंगे. आने वाले समय में सरकार के पास काफी शिकायतें आएंगी और नियंत्रण का काम बढ़ेगा. 

क्या फर्क पड़ेगा कंपनियों पर 

ई-कॉमर्स कंपनियों को इन नए नियमों के आ जाने से अपनी मार्केटिंग रणनीति में बदलाव करना पड़ेगा. साथ ही यूजर इंटरफेस में भी तकनीकी बदलाव होंगे. इन पर काफी पैसा खर्च होगा. शुक्रवार को सरकार ने डार्क पैटर्न्स के इस्तेमाल पर रोक लगा दी थी. नई गाइडलाइन सभी वस्तुओं और सेवाओं पर लागू होगी. इससे विज्ञापन बनाने वाली कंपनियों और विक्रेताओं पर सीधा असर पड़ेगा. उन्हें अपनी विज्ञापन पॉलिसी को भी पूरी तरह से बदलना होगा. 

क्या होता है डार्क पैटर्न 

भ्रामक विज्ञापनों और ऑफर को डार्क पैटर्न कहते हैं. इसमें ग्राहकों को गुमराह कर खरीदारी करवाई जाती है. सेंट्रल कंज्यूमर प्रोटेक्शन अथॉरिटी (CCPA) ने अपने नोटिफिकेशन में बताया है कि 13 तरीके से लोगों को बेवकूफ बनाया जा रहा है. सितंबर में इन्हीं डार्क पैटर्न की संख्या 10 थी. इनमें झूठे वादे, झूठे दावे, किसी चीज की कमी बताकर उसे बेचना, शर्तें छिपाकर किए जा रहे विज्ञापन, ड्रिप प्राइसिंग और लालच देकर खरीद करवाना आदि शामिल है.

इन्हें लागू करवाना पहाड़ जैसा काम  

नई गाइडलाइंस को लागू करवाना सरकार के लिए पहाड़ चढ़ने जैसा साबित होने वाला है. ई-कॉमर्स सेक्टर में हजारों कंपनियां काम करती हैं. इनमें अमेजन और फ्लिपकार्ट जैसे दिग्गज से लेकर बहुत छोटे लेवल पर काम कर रही कंपनियां भी शामिल हैं. लोग इंस्टाग्राम समेत सभी सोशल मीडिया वेबसाइट पर बिक्री के लिए प्रचार करते हैं. इन सभी पर नजर रखना और शिकायतों पर अमल करना आसान काम नहीं होने वाला है. 

ईज ऑफ डूइंग बिजनेस के खिलाफ है ये फैसला 

पहली बार डार्क पैटर्न का इस्तेमाल साल 2010 में हुआ था. इसमें ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स ने आधी बात छिपाकर लोगों में उत्सुकता जगाई. यह ट्रेंड तेजी से सफल हुआ और इसके बाद लगभग हर छोटी-बड़ी कंपनी इस खेल में शामिल हो गई. इसके बाद ‘जल्दी कीजिए, सिर्फ 1 घंटे में खत्म होगा यह डिस्काउंट’ जैसे ऑफर्स की बाढ़ आ गई. इससे न सिर्फ वेबसाइट का ट्रैफिक बढ़ा. बल्कि लोग कुछ न कुछ खरीदने भी लगे.

अब ज्यादातर कंपनियां दबी जुबान में इस नए फैसले को ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस’ के खिलाफ बता रही हैं. हालांकि आशंका जताई जा रही है कि कंपनियां इतने बड़े पैमाने पर टैक्निकल और मार्केटिंग बदलाव नहीं करेंगी. ज्यादातर की कोशिश ऐसे छोटे बदलाव करने की होगी ताकि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे. साल की शुरुआत में जब इस संबंध में चर्चा की जा रही थी तो एशिया इंटरनेट कोएलिशन (AIC)  ने इसे अनावश्यक नियामकीय सख्ती कहा था. एआईसी में गूगल, मेटा, अमेजन और एक्स जैसी दिग्गज कंपनियां शामिल हैं.

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