Dalai Lama: तिब्बती आध्यात्मिक धर्मगुरु दलाई लामा का बोधगया में आगमन, जानें कितना ख़ास है ये जग


Dalai Lama: बिहार के बोधगया को ज्ञान और मोक्ष की भूमि कहा जाता है. आगामी 16 दिसंबर 2023 को यहां तिब्बती धर्म गुरु दलाई लामा आने वाले हैं. कहा जा रहा है कि, यहां वे करीब एक माह तक प्रवास करेंगे. इस दौरान महाबोधि मंदिर में विशेष पूजा-अनुष्ठान, कठिन चीवरदान, प्रवचन, शिक्षण और दीक्षा समारोह भी होगा.

बताया जा रहा है कि, बोधगया में करीब दो दर्जन बौद्ध देशों के जनप्रतिनिधि और श्रद्धालु शामिल हो सकते हैं. साथ ही इस कार्यक्रम में हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू और बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार मौजूद रहेंगे. यह कार्यक्रम 15 जनवरी 2024 तक चलेगा, जिसमें दलाई लामा अपने अनुयायियों को बोधगया के कालचक्र मैदान में दीक्षा देंगे.

बिहार का बोधगया ऐसा शहर है, जिसका महत्व इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया. यहां कुछ ऐसी घटना हुई, जिसके बाद इसे ज्ञान और मोक्ष प्राप्ति का स्थान माना जाने लगा. आइए जानते हैं बोधिगया आखिर क्यों है इतना खास?

क्यों खास है बिहार का बोधिगया

बोधगया या बोधिगया का इतिहास भगवान बुद्ध से जुड़ा है और यही इसकी सबसे अहम खासियत है. यह एक प्राचीन स्थल है जो फल्गु नदी तट की खूबसूरती में बसा है. इसी नदी के तट के पास बोधिवृक्ष के नीचे तप कर भगवान बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई.

इसके अलावा ऐसा भी कहा जाता है कि, यहां सम्राट अशोक ने तीसरी शताब्दी से पहले महाबोधि मंदिर का निर्माण कराया था. गया का महाबोधि मंदिर प्राचीन बौद्ध मंदिरों में एक है. हालांकि बाद में इस मंदिर का कई बार विस्तार और पुनर्निर्माण होता रहा है. इस मंदिर में भूमिस्पर्श मुद्रा में भगवान बुद्ध की सोने की मूर्ति है.

बोधगया को क्यों कहा जाता है ज्ञान व मोक्ष की भूमि

बोधगया के अधिक चर्चित और खास होने की सबसे अहम वजह है यह है कि यहां भगवान बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी. इसलिए बौद्ध भिक्षुओं के लिए यह शहर दुनिया का सबसे पवित्र स्थान है. कहा जाता है कि करीब  531 ईसा पूर्व बोधगया स्थित महाबोधि मंदिर परिसर में एक पीपल पेड़ के नीचे  बैठकर बुद्ध ने कठोर तपस्या की, जिसके बाद उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई थी. बोधि का अर्थ ‘ज्ञान’ से होता है और वृक्ष का अर्थ है ‘पेड़’ है. इसलिए इस वृक्ष को ज्ञान का पेड़ और बोधगया को ज्ञान की नगरी कहा जाता है.

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