बिशन सिंह बेदी ने मुसीबत में नहीं छोड़ा था अनिल कुंबले का साथ, बनाया था भारत का नंबर वन स्पिनर

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Anil Kumble Share Story Of Bishan Singh Bedi : पूर्व भारतीय दिग्गज स्पिनर और कप्तान बिशन सिंह बेदी का आज 77 साल की उम्र में निधन हो गया. दिग्गज क्रिकेटर के निधन से पूरे क्रिकेट जगत में शोक की लहर देखने को मिली. तमाम भारतीय क्रिकेटर्स ने उन श्रद्धांजली दी. इसी बीच अनिल कुंबले ने दिग्गज को श्रंद्धांजली देते हुए एक स्पेशल स्टोरी शेयर कर बताया कि कैसे बिशन सिंह बेदी ने उन्हें नंबर वन स्पिनर बनाने में मदद की. 

कहानी की शुरुआत करते हुए अनिल कुंबले ने अपने एक्स अकाउंट पर लिखा, “जो मैंने बिशन पाजी के बर्थडे पर लिखा था, उसका कुछ हिस्सा.”

उन्होंने लिखा, “1990 में इंग्लैंड दौरे से पहले हमारा बेंगलुरु में कैंप था, जहां मुझे पहली बार बिशन पाजी के बड़े दिल और उदारता का अहसास हुआ था.”

“मैंने उनसे रिक्वेस्ट करते हुए कहा कि क्या इंडियन टीम के लिए आरवी कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग देखना मुमकिन होगा, जहां मैंने स्टूडेंट था. मैं नया था और इसे उत्साहित युवा के उत्साही अनुरोध के रूप में माना जा सकता था, लेकिन बिशन पाजी मान गए और पूरी टीम को कॉलेज लेकर गए. इसने मुझ पर स्थायी प्रभाव डाला.”

“बिशन पाजी सिर्फ सॉफ्ट नहीं थे, जो मुझे कुछ वक़्त बाद पता चल गया! वे फिजिकल फिटनेस पर काफी ध्यान देते थे. काम के मामले में कोई समझौता नहीं था, वो टास्कमास्टर थे.”

“सुबह में हम फिजिकल फिटनेस और फील्डिंग सेशन करते थे, दोपहर क्रिकेट कौशल को धार लगाने के लिए तय थी. बिशन पाजी टीम के साथ लंच करने को लेकर काफी सजग थे. क्योंकि उनका मानना था कि खिलाड़ियों के बीच ऐसी बॉन्डिंग होना ज़रूरी थी. वो टीम को परिवार के रूप में मानते थे, और जो परिवार साथ में खाता है वो साथ रहता है.”

इंग्लैंड टूर के लिए मैंने इंजीनियरिंग एक्जाम के बाद टीम को कुछ बाद में ज्वाइन किया था. मैंने टीम को ज्वाइन किया और फिर हम 1 am बजे बर्मिंघम पहुंचे. मेरी बॉडी की घड़ी ने कहा कि ये 5:30 am है, मैं बस इंडिया से पहुंचा था और अभी टाइम जोन के साथ तालमेल नहीं बिठा सका था. अगली सुबह 9:30 बजे से हमारा अभ्यास था. मैं अभी भी बहुत निराश था और तनाव महसूस कर रहा था, मैंने बिशन पाजी की उम्मीदों पर खरा उतरने के लिए संघर्ष किया.”

“मुझे याद है कि उन्होंने अपने अंदाज़ में कहा, ‘आओ बेटा, तुम्हारे पैर कमजोर हैं.’ उन्होंने मेरे दोस्त राजू को बुलाया और उससे मेरे कंघे पर बैठने के लिए कहा और मुझसे बैठक करने को कहा. मैं अपने पीछे सुन सकता था शुरू करो! ये बिशन पाजी थे- बिना समझौता किए अपने गोल्डन हार्ट के साथ चलते.”

“इंग्लैंड दौरे के बाद मैं ड्रॉप हो गया और जब तक मैंने वापसी की, अजीत वाडेकर क्रिकेट मैनेजर बन चुके थे, लेकिन बिशन पाजी ने मेरे करियर को करीब से देखना जारी रखा. वो कॉल उठाने और फोन करने में हिचकिचाते नहीं थे, फिर चाहें वो अच्छे परफॉर्मेंस पर तारीफ हो या कोई सलाह. उनके साथ खेल बारे में इतनी बाचतीच करना बहुत शानदार था.”

“जब भी कुछ भारतीय क्रिकेट टीम से जुड़ी कोई भी चीज सामने आती थी, तो वह फौरन मदद के लिए दूसरे के पास पहुंच जाते थे. वह हमेशा अपने मन की बात कहने में खुश थे, भले ही वो सबके लिए फिट न बैठे. वो अपनी राय पर डटे रहते थे. वह बहुत आध्यात्मिक इंसान हैं और उनके कई मैसेज उनके उस पक्ष को दिखाते हैं.” कुंबले ने इस कहानी के साथ तब की एक तस्वीर भी साझा कि जब टीम इंडिया आरवी कॉलेज गए थे. 

 

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