शून्य से शिखर तक भारत का सफर… इस एक बजट ने बदली देश की आर्थिक तस्वीर!

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<p>भारत की गिनती आज दुनिया की पांच सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में की जाती है. देश की जीडीपी का साइज करीब 3.75 ट्रिलियन डॉलर है और जल्दी ही 4 ट्रिलियन डॉलर के पार निकलने का अनुमान है. भारत लगातार दुनिया भर में सबसे तेज तरक्की करने वाली प्रमुख अर्थव्यवस्था बना हुआ है. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक समेत कई चोटी के अंतरराष्ट्रीय संस्थानों ने भारतीय अर्थव्यवस्था को दुनिया की ग्रोथ का इंजन और उम्मीद की किरण जैसी उपाधियां दी हैं.</p>
<h3>शून्य से शिखर का सफर…</h3>
<p>अभी बहुत समय नहीं बीता है, जब भारत की अर्थव्यवस्था बदहाली के शिखर पर बैठी थी. उस दौर को जब भी याद किया जाता है, एक कहानी का भी जिक्र आ जाता है कि कैसे भारत के सामने देश का सोना गिरवी रखने की नौबत आ गई थी. खजाने का सोना गिरवी रखने की नौबत से लेकर 650 बिलियन डॉलर के विदेशी मुद्रा भंडार तक और बदहाल इकोनॉमी से लेकर फ्रांस व ब्रटेन जैसे देशों को पीछे छोड़ते हुए दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं की कतार में शामिल होने तक का सफर आसान नहीं रहा है. आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि इस बेमिसाल सफर की शुरुआत कैसे हुई…</p>
<h3>नरसिम्हा राव ने दी देश को दिशा</h3>
<p>साल था 1991. तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव की सरकार के सामने बड़े आर्थिक संकट थे. देश ने ताजा-ताजा बैलेंस ऑफ पेमेंट क्राइसिस झेला था. विदेशी मुद्रा भंडार खाली हो चुका था. खाली खजाने में इतना भी पैसा नहीं बचा था कि देश के लिए एकदम जरूरी चीजें खरीदी जा सकें. उसी समय देश में लोकसभा के चुनाव हुए. पीवी नरसिम्हा राव ने सरकार बनाने के बाद आर्थिक सुधारों की शुरुआत की और इसकी नींव रखी गई उनकी सरकार के पहले बजट में, जिसे पेश किया तत्कालीन वित्त मंत्री डॉ मनमोहन सिंह ने.</p>
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<figure class="image"><img src="https://feeds.abplive.com/onecms/images/uploaded-images/2024/01/26/b079d90c64bc5a3bee968b360a7410891706271654102685_original.jpg" alt="भारत में आर्थिक सुधारों के सूत्रधार" />
<figcaption>भारत में आर्थिक सुधारों के सूत्रधार</figcaption>
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<h3>एक साथ कई समस्याओं का समाधान</h3>
<p>देश में आर्थिक सुधारों की शुरुआत हालांकि पहले ही 1985 में हो गई थी, लेकिन सुधारों की रफ्तार बेहद धीमी थी. अर्थव्यवस्था कमजोर और क्रिटिकल बनी हुई थी. देश को आजाद हुए 4 दशक से ज्यादा बीत चुके थे. देश की आर्थिक वृद्धि दर महज 3.5 फीसदी सालाना का औसत निकाल पा रही थी. लाइसेंस राज और परमिट राज ने व्यापार (आयात-निर्यात) को बर्बाद कर दिया था. 24 जुलाई 1991 को पेश हुए ऐतिहासिक बजट में इन सभी समस्याओं को एक साथ टारगेट किया गया.</p>
<h3>आत्मनिर्भर भारत की जड़ें</h3>
<p>1991 के बजट में लाइसेंस राज और परमिट सिस्टम की विदाई कर दी गई. देश की सुरक्षा के लिए रणनीतिक महत्व रखने वाले 18 सेक्टरों को छोड़ हर जगह से लाइसेंस राज को पूरी तरह समाप्त कर दिया गया. इसने आयात और निर्यात की व्यवस्था को सरल बनाया. भारत में लगभग हर सेक्टर के विनिर्माण को प्राइवेट सेक्टर के लिए खोल दिया गया. आज विनिर्माण के मामले में भारत को आत्मनिर्भर बनाने की जो मुहिम रंग दिखा रही है, उसकी जड़ें भी 1991 के बजट में हैं.</p>
<h3>राजकोष का प्रबंधन बन गया अहम</h3>
<p>विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिए कई कदम उठाए गए. 51 फीसदी तक फॉरेन इक्विटी पार्टिसिपेशन वाले निवेश को प्री-अप्रूवल मिला. फॉरेन टेक्नोलॉजी एग्रीमेंट के लिए सरकार से मंजूरी की जरूरत समाप्त कर दी गई. पहली बार फिस्कल कॉन्सोलिडेशन और फिस्कल डिसिप्लिन जैसे टर्म बजट में सुनाई दिए. इनसे भारत को विदेशी तकनीक के साथ विदेशी निवेश आकर्षित करने में मदद मिली. इस बजट के बाद राजकोष के प्रबंधन पर यानी घाटे को नियंत्रित रखने पर सरकारों का फोकस बढ़ गया.</p>
<h3>शेयर बाजार को दी गई संजीवनी</h3>
<p>1991 के बजट में ही बाजार नियामक सेबी को कई नई ताकतें दी गईं, जिससे सेबी कैपिटल मार्केट का सही अर्थों में नियामक बन पाया. आज भारत का पूंजी बाजार दुनिया के सबसे पारदर्शी और सबसे अच्छे से रेगुलेटेड बाजारों में एक माना जाता है. उसी बजट में अनिवासी भारतीयों के निवेश के नियम उदार बनाए गए. परिणाम आज हर साल एनआरआई अन्य देशों से अरबों डॉलर भारत भेजते हैं. म्यूचुअल फंड इंडस्ट्री को पहली बार प्राइवेट सेक्टर के लिए खोला गया, जिससे शेयर बाजार को फंड का बड़ा जरिया मिला.</p>
<h3>सच हुई मनमोहन सिंह की भविष्यवाणी</h3>
<p>डॉ मनमोहन सिंह ने 1991 का ऐतिहासिक बजट, जो उनका पहला बजट भी था, पेश करते हुए विक्टर ह्यूगो को उद्धृत किया था- दुनिया की कोई ताकत उस विचार को नहीं रोक सकती है, जिसका समय आ गया है. तत्कालीन वित्त मंत्री ने अपने उस बजट भाषण में देश को सपना दिखाया था- मौजूदा आर्थिक हालात चाहे कितने खराब हों, लेकिन जल्द ही भारत का समय आएगा और दुनिया की सबसे बड़ी आर्थिक ताकतों में भारत की गिनती होगी. तीन दशक बाद देश उस सपने को सच में बदल चुका है.</p>
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<figure class="image"><img src="https://feeds.abplive.com/onecms/images/uploaded-images/2024/01/26/c9f1b61dde0154db139b7171e9c8559a1706271588819685_original.jpg" alt="1991 का बजट पेश करने के बाद तत्कालीन वित्त मंत्री मनमोहन सिंह" />
<figcaption>1991 का बजट पेश करने के बाद तत्कालीन वित्त मंत्री मनमोहन सिंह</figcaption>
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<h3>नए भारत के सामने नए सपने</h3>
<p>अब भारत के सामने नए लक्ष्य हैं. प्रधानमंत्री <a title="नरेंद्र मोदी" href="https://www.abplive.com/topic/narendra-modi" data-type="interlinkingkeywords">नरेंद्र मोदी</a> की सरकार ने 2025 तक देश को 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने का लक्ष्य तय किया है. कई अंतरराष्ट्रीय एजेंसियां भारत की अर्थव्यवस्था और भविष्य को लेकर अपनी भविष्यवाणियां कर रही हैं. कुछ अनुमान अगर सच निकलते हैं तो 2047 में जब भारत आजादी के 100 साल का जश्न मना रहा होगा, देश की दुनिया की सबसे अहम आर्थिक ताकत बन चुका होगा…</p>
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