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<p>लोकसभा चुनाव को लेकर सभी पार्टियों ने तैयारियां तेज कर दी है. जहां एक तरफ प्रधानमंत्री <a title="नरेंद्र मोदी" href="https://www.abplive.com/topic/narendra-modi" data-type="interlinkingkeywords">नरेंद्र मोदी</a> की सरकार एलपीजी सिलेंडर पर सब्सिडी बढ़ाने और दाम कम करने जैसे फैसले ले रही है, वहीं मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस नई गारंटियां लेकर आई है. कांग्रेस नेता राहुल गांधी के द्वारा पांच गारंटियों का ऐलान किए जाने के बाद उसकी खूब चर्चा हो रही है.</p>
<h3>‘युवाओं को नौकरी’ है पहली गारंटी</h3>
<p>राहुल गांधी ने भारत जोड़ो न्याय यात्रा के दौरान राजस्थान के बांसवाड़ा में अपनी पांच गारंटियों के बारे में जानकारी दी. उन्होंने कहा कि अगर उनकी पार्टी सरकार बनाती है तो वे सबसे पहले इन पांच गारंटियों को पूरा करेंगे. राहुल गांधी की पहली गारंटी नौकरी की है. वह कहते हैं कि देश में 25 साल से कम उम्र वाले हर ग्रेजुएट को उनकी पहली नौकरी गारंटी के तौर पर मिलेगी.</p>
<h3>राहुल गांधी की अन्य चार गारंटियां</h3>
<p>कांग्रेस की दूसरी और तीसरी गारंटी युवाओं को प्रशिक्षण मुहैया कराने और स्टाइपेंड देने की है. युवाओं को सरकार की ओर से प्रशिक्षण और 1-1 लाख रुपये का स्टाइपेंड मिलेगा. चौथी गारंटी पेपर लीक नहीं होना सुनिश्चित करने की है. वहीं उनकी पांचवीं गारंटी स्टार्टअप और फंड को लेकर है. इसके तहत गिग वर्कर्स के लिए सोशल सिक्योरिटी सुनिश्चित की जाएगी.</p>
<h3>पहले भी कांग्रेस कर चुकी है प्रयोग</h3>
<p>कांग्रेस पार्टी ने पहली बार इस तरह की गारंटी का ऐलान नहीं किया है. मुख्य विपक्षी पार्टी <a title="लोकसभा चुनाव" href="https://www.abplive.com/topic/lok-sabha-election-2024" data-type="interlinkingkeywords">लोकसभा चुनाव</a> से पहले विभिन्न राज्यों के चुनावों में भी गारंटियों के रूप में चुनावी वादों को आजमा चुकी है. इस मामले में कर्नाटक का उदाहरण खास हो जाता है, क्योंकि वहां गारंटियों के वादे के बाद कांग्रेस को सरकार बनाने में कामयाबी हासिल हुई. चुनाव बाद बनी कांग्रेस सरकार ने गारंटियों के ऊपर अमल भी किया.</p>
<h3>गारंटी वाली योजनाओं के आर्थिक फायदे</h3>
<p>कर्नाटक सरकार की ही मिड ईयर रिव्यू की मानें तो गारंटियों के रूप में किए जा रहे उपाय शॉर्ट रन में अर्थव्यवस्था के लिए मददगार साबित हो सकते हैं. इस तरह के उपायों से उपभोग को बढ़ावा देने में मदद मिलती है, जो अंतत: अर्थव्यवस्था को बढ़ाव देने का कारगर उपाय साबित होता है. केंद्रीय स्तर पर पहले भी ऐसा प्रयोग हो चुका है. चाहे कांग्रेस की सरकार के दौरान शुरू की गई ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना हो या भाजपा सरकार के द्वारा दी जा रही पीएम किसान सम्मान निधि हो, ये उपाय जमीनी स्तर तक सीधी मदद पहुंचाकर उपभोग को बढ़ावा देने में मदद करते हैं.</p>
<h3>गारंटियों से क्या हो सकते हैं नुकसान?</h3>
<p>हालांकि कई अर्थशास्त्री इस तरह के उपायों को लंबी अवधि में अर्थव्यवस्था के लिए बोझ बताते हैं. अर्थशास्त्री इस तरह की योजनाओं को फ्रीबीज बताते हैं, जिसके लिए पीएम मोदी ‘मुफ्त की रेवड़ियां’ टर्म यूज कर चुके हैं. ऐसी योजनाओं को किसी भी अर्थव्यवस्था के लिए दोधारी तलवार माना जाता है. खासकर भारत जैसी अर्थव्यवस्था, जो अभी लोअर इनकम कैटेगरी से ऊपर उठने का प्रयास कर रही है, इन योजनाओं के दूरगामी असर नकारात्मक हो सकते हैं. एडीआर की एक रिपोर्ट बताती है कि इस तरह की योजनाओं से आम लोगों में सरकार के ऊपर निर्भरता बढ़ जाती है. नीति आयोग भी इस बात से सहमत दिखता है और कहता है कि ये योजनाएं उद्यमिता की धारणा कमजोर करती हैं, जो लॉन्ग रन में काफी तकलीफ देने वाला साबित हो सकता है.</p>
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