रामलला की प्राण प्रतिष्ठा में हुआ महाकाल की भस्म का इस्तेमाल, जानें महत्व

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Ayodhya Ram Mandir 2024: सदियों का इंतजार खत्म हुआ, राम लला अपनी जन्मभूमि अयोध्या के राम मंदिर में सिंहासन पर विराजमान हो चुके हैं. रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा का विधान मंत्रोचार के साथ पूरा हो गया है. गर्भगृह से श्रीराम के प्रथम दर्शन हो गए हैं. पीएम नरेंद्र मोदी ने ही रामलला की आंख से पट्टी खोली, उन्हें काजल लगाया गया.

हाथों में धनुष-बाण धारण किए श्रीराम पीतांबर से सुशोभित है. प्राण प्रतिष्ठा के लिए राम मंदिर में देश के अलग-अलग राज्यों से कई सामग्री भेजी गई. इसी क्रम में महाकाल की भस्म से रामलला का पूजन संपन्न हुआ.

महाकाल की भस्म से हुआ रामलला का पूजन

राम जी भगवान विष्णु के अवतार है, श्रीहरि विष्णु को शंख, चक्र, गदा, पदम बहुत प्रिय है इसलिए प्राण प्रतिष्ठा में इन सामग्री का उपयोग हुए. रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा में उज्जैन महाकाल की भस्म का भी विशेष प्रयोग किया गया. कहा जाता है कि महाकाल की भस्म श्मशान से लाई जाती है. भस्म शिव जी का प्रिय आभूषण माना जाता है. शिव संहार के देवता है. भोलेनाथ भस्म धारण ये संदेश देते हैं कि जब इस संसार का विनाश होगा तब सभी जीवों की आत्माएं शिवजी में ही समा जाएंगी.

विश्व प्रसिद्ध है बाबा महाकाल की भस्म आरती

  • महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मध्य प्रदेश के उज्जैन में स्थित में स्थित है. यहां की भस्म आरती विश्वभर में प्रसिद्ध है. प्रतिदिन बाबा का भस्म से श्रृंगार किया जाता है.
  • भस्म आरती को लेकर कई मान्यताएं प्रचलित हैं. कहते हैं प्राचीन समय से ही महाकाल बाबा को चिता की भस्म चढ़ाई जाती थी लेकिन अब यहां उपलों से विशेष भस्म बनाई जाती है.
  • पलाश, बड़, शमी, पीपल, अमलतास, बैर के पेड़ की लकडि़यां और उपलों को  एक साथ जलाया जाता है. पूरी प्रक्रिया के दौरान मंत्रोच्चारण किए जाते हैं. फिर इसे एक साफ कपड़े से छानकर बाबा का श्रृंगार किया जाता है.  ऐसी मान्यता है कि जिस व्यक्ति की चिता से महादेव का श्रृंगार किया जाता है, उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है.

ऐसे हुई भस्म आरती की शुरुआत

धार्मिक आस्था और पौराणिक कथाओं के मुताबिक, कई सालों पहले उज्जैन में दूषण नामक एक राक्षस था जो वहां की प्रजा और राजा को प्रताड़ित करता रहता था. उससे तंग आसक लोगों ने महादेव की अराधना की और अपनी रक्षी की गुहार लगाई. कहा जाता है कि उनकी पूजा स्वीकार करके स्वयं महादेव ने उस राक्षस का वध किया. इसके बाद उन्होंने राक्षस की राख से खुद का श्रृंगार किया और फिर वहीं बस गए. तब से इस स्थान का नाम महाकालेश्र्वर पड़ गया है और तभी से भस्म आरती की शुरुआत हुई.

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