यूनिकॉर्न क्लब में हुई नई एंट्री, अब इस स्टार्टअप कंपनी की वैल्यू बिलियन डॉलर के पार

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स्टार्टअप कंपनियों के सामने सफल होना एक बड़ी चुनौती होती है. यूनिकॉर्न बनना इस यात्रा के अहम पड़ावों में से एक माना जाता है. कुछ समय पहले तेजी से कई स्टार्टअप यूनिकॉर्न क्लब में शामिल हो रहे थे, लेकिन फंडिंग विंटर के साथ ही इसमें सुस्ती आ गई. साल 2023 में 11 वें महीने यानी नवंबर में जाकर देश को दूसरा यूनिकॉर्न मिल पाया है.

जेप्टो बनी थी 2023 की पहली यूनिकॉर्न

प्रतिष्ठित यूनिकॉर्न क्लब में शामिल होने वाली नई स्टार्टअप कंपनी है इनक्रेड फाइनेंशियल सर्विसेज लिमिटेड, जिसे इनक्रेड फाइनेंस के नाम से भी जाना जाता है. कंपनी को हालिया फंडिंग राउंड से यूनिकॉर्न क्लब में एंट्री लेने में मदद मिली है. इसके साथ ही इनक्रेड फाइनेंस दूसरी भारतीय स्टार्टअप कंपनी बन गई है, जो 2023 में यूनिकॉर्न बनी है. इससे पहले 2023 मेंक्विक कॉमर्स कंपनी जेप्टो ने भी यूनिकॉर्न बनने में सफलता हासिल की थी.

इतनी आंकी गई है वैल्यू

यूनिकॉर्न वैसी स्टार्टअप कंपनियों को कहा जाता है, जिनकी वैल्यू 1 बिलियन डॉलर के पार निकल जाती है. इनक्रेड ग्रुप ने हाल ही में सीरिज डी राउंड की फंडिंग पूरी की है, जिसमें कंपनी को 500 करोड़ रुपये मिले हैं. इस फंडिंग राउंड में इनक्रेड फाइनेंस की वैल्यू 1.05 बिलियन डॉलर (करीब 8,800 करोड़ रुपये) आंकी गई है. इस तरह कंपनी को यूनिकॉर्न का दर्जा मिल पाया है.

यहां करेगी पैसों का इस्तेमाल

इनक्रेड फाइनेंस ने हालांकि ये जानकारी नहीं दी है कि ताजे फंडिंग राउंड में उसे किन इन्वेस्टर्स से पैसे मिले हैं. कंपनी ने सिर्फ ये बताया है कि ताजे फंडिंग राउंड में एक ग्लोबल प्राइवेट इक्विटी फंड समेत कॉरपोरेट ट्रेजरी, फैमिली ऑफिस और अल्ट्रा हाई नेटवर्थ इंडिविजुअल्स ने हिस्सा लिया है. कंपनी फंडिंग का इस्तेमाल कंज्यूमर लोन, स्टूडेंट लोन और एमएसएमई लोन जैसे अपने कोर बिजनेस में करने वाली है.

सात साल पुरानी है कंपनी

इनक्रेड फाइनेंस की शुरुआत साल 2016 में टेक-इनेबल्ड लेंडिंग प्लेटफॉर्म के रूप में हुई थी. इसके फाउंडर भूपिंदर सिंह हैं, जो Deutsche Bank में काम कर चुके हैं. इसके निवेशकों में इन्वेस्टकॉर्प, ओक्स एसेट मैनेजमेंट, मूर कैपिटल, एलेवार इक्विटी, पैरागॉन पार्टनर्स, मणिपाल ग्रुप के चेयरमैन रंजन पई और लैंडमार्क होल्डिंग्स (डालमिया ग्रुप) के फउंडिंग चेयरमैन गौरव डालमिया भी शामिल हैं. कंपनी 7,500 करोड़ रुपये के लोनबुक को मैनेज करती है.

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