महंगाई ने दी राहत, दो साल में हुई सबसे कम, लेकिन यूरोप की इकोनॉमी के ऊपर आया ये खतरा

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पूरी दुनिया पिछले दो-तीन सालों से आर्थिक चुनौतियों से जूझ रही है. पहले कोरोना महामारी और बाद में युद्धों के चलते बढ़े भू-राजनीतिक तनावों ने आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान डाला. उक्त कारणों से दुनिया भर में महंगाई रिकॉर्ड उच्च स्तर पर पहुंच गई. सबसे प्रमुख आर्थिक क्षेत्रों में से एक यूरोजोन इन व्यवधानों से सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ और अब उसके सामने आर्थिक मंदी का भयावह खतरा उपस्थित हो गया है.

क्या कहते हैं आधिकारिक आंकड़े

एएफपी की एक रिपोर्ट में हालिया आंकड़ों के हवाले से बताया गया है कि यूरोजोन आर्थिक मंदी की दहलीज पर जा पहुंचा है. रिपोर्ट के अनुसार, इस साल की तीसरी तिमाही यानी जुलाई से सितंबर के तीन महीनों के दौरान यूरोजोन की अर्थव्यवस्था का साइज कुछ कम हो गया. दूसरे शब्दों में कहें तो आलोच्य अवधि के दौरान यूरोजोन की आर्थिक वृद्धि दर शून्य से कम रही.

इतनी रही यूरोजोन की ग्रोथ रेट

यूरोजोन यूरोप के 20 उन देशों के समूह को कहा जाता है, जो एक कॉमन करेंसी यूरो का इस्तेमाल करते हैं. आंकड़ों के अनुसार, जुलाई से सितंबर महीने के दौरान यूरोजोन की अर्थव्यवस्था में 0.1 फीसदी की गिरावट आई. उससे पहले की तिमाही यानी अप्रैल से जून 2023 के दौरान के तीन महीनों में यूरोजोन की आर्थिक वृद्धि दर महज 0.20 फीसदी रही थी.

अगर हुआ ऐसा तो आ जाएगी मंदी

अर्थशास्त्र की मानद परिभाषा के अनुसार, अगर कोई इकोनॉमी लगातार दो तिमाहियों में संकुचित होती है यानी उसके साइज में गिरावट आती है तो मान लिया जाता है कि अमुक अर्थव्यवस्था मंदी की चपेट में आ गई है. इसे ऐसे भी कह सकते हैं कि लगातार दो तिमाहियों में आर्थिक वृद्धि दर का नकारात्मक रहना या शून्य से कम रहना आर्थिक मंदी है. यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था जर्मनी पहले ही मंदी की चपेट में आ चुकी है. अब यूरोजोन के ऊपर मंदी का खबरा है. अगर चालू तिमाही यानी अक्टूबर से दिसंबर के दौरान आर्थिक वृद्धि दर शून्य से कम रही तो यूरोजोन भी मंदी में चला जाएगा.

इतनी कम हो गई खुदरा महंगाई

हालांकि इस बीच यूरोजोन के लिए एक राहत की बात भी है. आर्थिक वृद्धि दर भले ही सुस्त पड़ी हो, महंगाई के मोर्चे पर बड़ी राहत मिली है. यूरोस्टैट के आंकड़ों के अनुसार, अक्टूबर महीने में यूरोजोन में खुदरा महंगाई 2.9 फीसदी रही. यह महंगाई का दो साल का सबसे निचला स्तर है. दरअसल महंगाई को कम करने के लिए यूरोपियन सेंट्रल बैंक ने आक्रामक तरीके से ब्याज दरें बढ़ाई है. इससे महंगाई तो काबू हुई है, लेकिन आर्थिक वृद्धि दर बर्बाद हो गई है.

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