बुधवार को भाई दूज या यम द्वितीया का त्योहार, जानें क्या है इस पर्व का शास्त्रीय महत्व

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भाई दूज अथवा यम द्वितीया

सनातन शास्त्रों के अनुसार भाई–बहन का सबसे बड़ा त्योहार भाई दूज माना जाता है, अब आप बोलेंगे कि भाई-बहन का राखी सबसे बड़ा त्योहार है. लेकिन भविष्य पुराण उत्तर पर्व अध्याय क्रमांक 137 के अनुसार, जब देवासुर संग्राम में असुर पराजित हुए तब वे अपने गुरु शुक्राचार्य के पास इस हार का कारण जानने पहुंचे. शुक्राचार्य ने बताया कि इंद्राणी (शची) ने इंद्र की कलाई पर रक्षा सूत्र उनकी सुरक्षा के लिए बांधा था. उसी रक्षा सूत्र ने उन्हें बचाया था, यही से रक्षा बंधन का आरंभ हुआ. इस पर्व को बाद में लोकाचार परंपरा के अनुसार सिर्फ भाई–बहन तक सीमित कर दिया.

चलिए जानते हैं कौन किसको राखी बांध सकता है-

  • माता अपने पुत्र को.
  • बेटी अपने पिता को.
  • बहन-भाई को.
  • विद्यार्थी अपने गुरु को.
  • ब्राह्मण किसी क्षत्रिय, वैश्य या शूद्र को.
  • पोते-पोती अपने दादा-दादी को.
  • मित्र अपने मित्र को.
  • पत्नी अपने पति को.
  • फौजियों को (ये सबसे नेक काम है क्योंकि सेना को इस रक्षा सूत्र की आवश्यकता होती है.)
  • राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (मुंबई) आपस मे अपने आप को रक्षा स्तोत्र बांधते है रक्षा के हेतु.

चलिए अब भाई दूज का शास्त्रीय स्वरूप देखते हैं. स्कंद पुराण के वैष्णव खंड कार्तिकमास-माहात्म्य अध्याय 10–11, अनुसार पूर्वकाल में कार्तिक शुक्ला द्वितीया को यमुना जी ने अपने भाई यमराज को अपने ही घर पर भोजन कराया और उनका सत्कार किया था. उस दिन कर्मपाश में बंधे हुए नारकीय पापियों को भी यमराज छोड़ देते हैं, जिससे वे अपनी इच्छा के अनुसार घूमते हैं. इस तिथि में विद्वान् पुरुष भी प्राय: अपने घर भोजन नहीं करते. व्रतवान् पुरुष वस्त्र और आभूषणों से हर्ष पूर्वक बहन का पूजन करें. बड़ी बहन को प्रणाम करके उसका आशीर्वाद लें. तत्पश्चात् सभी बहनों को वस्त्र और आभूषण देकर सन्तुष्ट करें.

अपनी सगी बहिन न होने पर चाचा की पुत्री अथवा पिता की बहन के घर जाकर आदरपूर्वक भोजन करें. द्वितीया तिथि को ब्राह्म मुहूर्त में उठकर मन–ही–मन अपने हित की बातों का चिन्तन करें. तदनन्तर शौच आदि से निवृत्त हो दन्तधावनपूर्वक प्रातःकाल स्नान करें. फिर श्वेत वस्त्र, श्वेत पुष्पोंकी माला और श्वेत चन्दन धारण करें. नित्यकर्म पूरा करके प्रसन्नतापूर्वक औदुम्बर (गूलर) के वृक्ष के नीचे जाएं. वहां उत्तम मण्डल बनाकर उसमें अष्टदल कमल बनावे तत्पश्चात् उस औदुम्बर-मण्डल में भगवान ब्रह्मा, भगवान विष्णु, भगवान शिव तथा सरस्वती देवी का स्वस्थ चित्त से आवाहन एवं पूजन करें. चन्दन, अगरु, कस्तूरी, कुंकुम, पुष्प, धूप, नैवेद्य एवं नारियल आदि के द्वारा पूजन करें. तदनन्तर पूजा समाप्त करके भगवान् विष्णु में भक्ति रखते हुए अपने कुटुम्ब के श्रेष्ठ वयोवृद्ध पुरुषों को श्रद्धाभक्ति के साथ प्रणाम करें.

फिर अनेक प्रकार के सुन्दर फलों द्वारा अपने स्वजनों को तृप्त करें. उसके बाद अपनी सहोदरा बड़ी भगिनी के घर जाय और उसे भी भक्तिपूर्वक प्रणाम करते हुए कहे-‘सौभाग्यवती बहिन! तुम कल्याणमयी हो. मैं अपने कल्याण के लिए तुम्हारे चरणारविन्दों में प्रणाम करने के उद्देश्य से तुम्हारे घर आया हूं.’ ऐसा कहकर बहिन को भगवद्बुद्धि से प्रणाम करें. तब बहिन भाई से यह उत्तम वचन कहें – ‘भैया! आज मैं तुम्हें पाकर धन्य हो गयी. आज सचमुच मैं मंगलमयी हूं कुलदीपक! आज अपनी आयु–वृद्धि के लिए तुम्हें मेरे घर में भोजन करना चाहिए.

जो इस प्रकार यम द्वितीया का व्रत करता है, वह अल्प मृत्यु से मुक्त हो पुत्र-पौत्र आदि से सम्पन्न होता है और अन्त में मोक्ष पाता है. ये सभी व्रत और नाना प्रकार के दान गृहस्थ के लिए ही योग्य हैं. व्रत में लगा हुआ जो पुरुष यम द्वितीया की इस कथा को सुनता है, उसके सब पापों का नाश हो जाता है, ऐसा भगवान माधव का कथन है. कार्तिक शुक्ल की द्वितीया को यमुना जी में स्नान करने वाला पुरुष यमलोक का दर्शन नहीं करता.

जिन्होंने यम द्वितीया के दिन अपनी सौभाग्यवती बहनों को वस्त्रदान आदि से सन्तुष्ट किया है, उन्हें एक वर्ष तक कलह अथवा शत्रु भय का सामना नहीं करना पड़ता. उस तिथि को यमुना जी ने बहन के स्नेह से यमराज देव को भोजन कराया था. इसलिए उस दिन जो बहन के हाथ से भोजन करता है, वह धन एवं उत्तम सम्पदा को प्राप्त होता है. राजाओं ने जिन कैदियों को कारागृह में डाल रखा हो, उन्हें यम द्वितीया के दिन बहन के घर भोजन करने के लिये अवश्य भेजना चाहिए. वह भी न हो तो मौसी अथवा मामा की पुत्री को बहिन माने अथवा गोत्र या कुटुम्ब के सम्बन्ध से किसी के साथ बहन का नाता जोड़ लें. यम द्वितीया को कभी भी अपने घर भोजन न करें.

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[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]

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