तमसो मा ज्योतिर्गमय…क्या आप जानते हैं कितना पुराना है दीपक जलाने का इतिहास?

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Lighting Lamps History and Importance: ओम (ॐ) असतो मा सद्गमय। तमसो मा ज्योतिर्गमय। मृत्योर्मामृतं गमय ॥ ओम (ॐ) शान्ति शान्ति शान्तिः ॥

वैदिक काल में होने वाले सोमयज्ञ में यह श्लोक पढ़ा जाता था जिसे ‘बृहदारण्यकोपनिषद्’ (Brihadaranyaka Upanishad) से लिया गया है, इसका अर्थ है, ‘मुझे असत्य से सत्य की ओर ले चलो. मुझे अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो. मुझे मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो.’ वहीं तमसो मा ज्योतिर्गमय का अर्थ है- अंधकार से प्रकाश की तरफ बढ़ना.

हालांकि इस श्लोक में अंधकार का तात्पर्य बुराई या गलत आदतों है. इसके अनुसार अंधकार रूपी बुरी आदतों का त्यागकर प्रकाश यानी सत्यता की ओर उन्मुख होगा ही असल साधना और आध्यात्म है.

यदि बात करें प्रज्वलित दीपक की ज्योति की तो, दीपक जलाने का इतिहास बहुत पुराना है. ऋग्वेद काल से लेकर कलयुग तक हिंदू धर्म में इसके महत्व के बारे में बताया गया है. आज भी पूजा-पाठ, अनुष्ठान और शुभ कार्यों में दीपक जलाए जाने का विधान है. आइये जानते हैं दीपक जलाने के इतिहास और महत्व के बारे में-

दीपक का इतिहास- ऋग्वेद से कलयुग तक

  • ऋग्वेद के अनुसार, दीपक में देवताओं का तेज रहता है. यही कारण है कि जहां दीप प्रज्वलित किए जाते हैं वहां सकारात्मक ऊर्जा का संचार होने लगता है और नकारात्मकता दूर चली जाती है. दीपक जलाने की परंपरा ऋग्वेद काल से मानी जाती है. हालांकि समय-समय पर अलग-अलग कारणों से दीप जलाने के चलन, परंपरा, पूजा-पाठ और पर्व से जुड़ गए.
  • त्रेतायुग में श्रीराम जी जब 14 साल का वनवास पूरा कर सीता और लक्ष्मण के साथ अयोध्या आए तो, अयोध्यावासियों ने पूरी अयोध्या को दीप प्रज्वलित कर रोशन किया था. इस घटना के बाद से ही कार्तिक अमावस्या यानी दीपावली के दिन दीप जलाने की परंपरा की शुरुआत मानी जाती है.
  • इसके बाद द्वापर युग में श्रीकृष्ण द्वारा जब नरकासुर नामक राक्षस का वध किया गया तब भी लोगों ने खुशी में दीप जलाए थे. इस घटना के बाद नरक चतुर्दशी के दिन दीप जलाने की परंपरा की शुरुआत मानी जाती है.
  • एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार, कार्तिक पूर्णिमा पर भगवान शिव ने त्रिपुरासुर का वध किया था. इसलिए सभी देवताओं ने प्रसन्न होकर काशी पहुंचकर दीप जलाए थे. इसे आज भी देव दीपावली के रूप में मनाया जाता है और दीप जलाए जाते हैं.
  • कलयुग में लोग घर की सुख-समद्धि और खुशहाली की कामना के लिए पूजा-पाठ के दौरान दीप जलाते हैं. हिंदू धर्म में देवी-देवताओं के साथ ही पवित्र और धार्मिक पेड़-पौधों के समक्ष भी दीप जलाने का महत्व है.

पांच तत्व का प्रतीक है दीपक

अग्नि पुराण, ब्रम्हवैवर्त पुराण, देवी पुराण, उपनिषदों और वेदों में भी दीप जलाने के नियम और महत्व के बारे में बताया गया है. दीपक को पंच तत्व का प्रतीक माना जाता है. इसके पीछे मान्यता है कि, दीपक बनाने के लिए मिट्टी को पानी में डाला जाता है, जोकि भूमि और जल तत्व का प्रतीक है. इसके बाद दीपक को धूप व हवा में सुखाया जाता है, जोकि आकाश और वायु तत्व का प्रतीक है. इसके बाद आखिर में दीपक को आग में तपाया जाता है, जोकि अग्नि तत्व का प्रतीक है. इस तरह से मिट्टी का दीपक भूमि, जल, आकाश, वायु और अग्नि पांच तत्व का प्रतीक है.

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