डिसीजन लेने में भी जब हो फोबिया तो है संभलने की जरूरत, जानें क्या है डिसाइडोफोबिया?


Decidophobia : क्या रिजल्ट की टेंशन में आपको भी फैसले लेने में दिक्कत आती है. छोटी-छोटी चीजों के बारें में डिसीजन लेने में भी घबराहट होती है, जो धीरे-धीरे डर में बदल जाता है. अगर हां तो सावधान हो जाइए, क्योंकि आपको ‘डिसाइडोफोबिया’ (Decidophobia) हो सकता है.

एक्सपर्ट्स के मुताबिक, हर 100 लोगों में करीब 80 लोगों में इस तरह की परेशानी हो सकती है. इसकी वजह से कई तरह की समस्याएं हो सकती हैं.कई बार तो फैसले लेने के लिए दूसरों पर भी डिपेंड होना पड़ सकता है. आइए जानते हैं डिसाइडोफोबिया क्या होता है, इसका हमारी जिंदगी पर क्या असर पड़ सकता है.

डिसाइडोफोबिया क्या है

डिसाइडोफोबिया डिसाइड (Decide) और फोबिया (Phobia) से मिलकर बना है. जब किसी फैसले को लेने में बहुत ज्यादा डर या घबराहट लगे तो हो सकता है कि डिसाइडोफोबिया हो. यह एक तरह का मेंटल डिसऑर्डर है, जिसका असर जिंदगी को प्रभावित कर सकता है. डिसाइडोफोबिया के शिकार लोग ज्यादातर किसी फैसले को लेने से बचते हैं. 

डिसाइडोफोबिया के क्या लक्षण हैं?

  • छोटे-बड़े किसी तरह के फैसले लेने से पहले बहुत ज्यादा चिंता या तनाव होना.
  • फैसला लेते समय बहुत ज्यादा पसीना निकलना.
  • डिसीजन मेकिंग में सिरदर्द या दिल की धड़कन तेज हो जाना.
  • खुद के फैसलों को दूसरों पर टालने की कोशिश करना.
  • फैसले लेते समय खुद पर भरोसा न होना.

डिसाइडोफोबिया क्यों होता है?

इस बीमारी के एक नहीं कई कारण हो सकते हैं. अगर किसी का पहले लिया गया कोई फैसला गलत निकला हो तो वह आगे फैसले लेने से डर सकता है. इसके अलावा परिवार के सदस्य या दोस्त जब किसी निर्णय लेने में मदद नहीं करते हैं तो सेल्फ कान्फिडन्स खोने लगता है, इसके अलावा जब किसी पर फैमिली, सोसाइटी और खुद से ज्यादा उम्मीद होती हैं, तो वह कोई फैसले लेने में हिचकता है.

डिसाइडोफोबिया से क्या समस्याएं?

  1. डिसाइडोफोबिया का असर पर्सनल लाइफ पर पड़ता है.
  2. करियर और प्रोफेशनल लाइफ में दिक्कतें आती हैं.
  3. नौकरी, प्रमोशन या किसी एग्जाम में समस्याएं आना.
  4. अपने बड़े और छोटे फैसलों को टालने से पर्सनल ग्रोथ में रुकावट आ सकती है.
  5. चिंता-तनाव की वजह से डिप्रेशन या एंग्जाइटी हो सकती है.

डिसाइडोफोबिया का क्या इलाज है?

  • पॉजिटिव सोचें.
  • फैसलों के परिणाम को स्वीकार करें.
  • काउंसलिंग या थेरेपी से समस्या से निजात पा सकते हैं.
  • कॉग्निटिव-बिहेवियरल थेरेपी की मदद लें.
  • छोटे-छोटे फैसले लेने से शुरुआत करें, बाद में बड़े फैसले लें.
  • मेंटल स्ट्रेस से बचने के लिए रोजाना ध्यान और मेडिटेशन करें.

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