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<p>रिजर्व बैंक ने मार्केट ट्रेडर्स को बड़ी राहत दी है. यह राहत उन ट्रेडर्स के लिए है, जो एक्सचेंज ट्रेडेड करेंसी डेरिवेटिव्स में ट्रेड करते हैं. अब ऐसे ट्रेडर्स को नए अनुपालन के लिए अतिरिक्त समय मिल गया है.</p>
<h3>अब 3 मई से लागू होंगे प्रावधान</h3>
<p>आरबीआई ने कहा, लोगों से मिले फीडबैक और हालिया बदलावों को देखते हुए यह निर्णय लिया गया है कि एक्सचेंज ट्रेडेड करेंसी डेरिवेटिव्स (ईटीसीडी) पर हालिया निर्देश 5 अप्रैल के बजाय 3 मई से 2024 से लागू होंगे. सेंट्रल बैंक ने कहा कि उसे 5 जनवरी को जारी सर्कुलर के बाद एक्सचेंज ट्रेडेड करेंसी डेरिवेटिव्स में भागीदारी को लेकर लोगों के सवाल मिल रहे थे.</p>
<h3>हेजिंग के लिए ही कर सकते हैं ये ट्रेड</h3>
<p>दरअसल आरबीआई के जनवरी वाले सर्कुलर से बाजार में अनिश्चितता का माहौल बन रहा था. आरबीआई ने उस सर्कुलर में यह सुनिश्चित करने का प्रयास किया था कि एक्सचेंज ट्रेडेड करेंसी डेरिवेटिव्स में जो ट्रेड किए जा रहे हैं, वो हेजिंग के लिए हैं. इसके लिए ट्रेडर्स को डॉक्यूमेंट्री प्रूफ देने के लिए कहा गया है. आरबीआई ने इसके लिए 5 अप्रैल की तारीख तय की थी. मतलब नया प्रावधान आज से लागू हो रहा था. अब इसके लिए करीब एक महीने का अतिरिक्त समय दिया गया है.</p>
<h3>जीरोधा ने दी थी बंद करने की हिदायत</h3>
<p>आरबीआई के सर्कुलर के चलते ट्रेडर्स परेशान हो रहे थे. एक दिन पहले ही ब्रोकर फर्म जीरोधा ने अपने मेंबर्स को 5 अप्रैल की डेडलाइन से पहले फॉरेक्स डेरिवेटिव्स पॉजिशन क्लोज करने की सलाह दी थी. जीरोधा के नितिन कामथ ने आरबीआई के गाइडलाइंस को रिटेल इन्वेस्टर्स के लिए करेंसी डेरिवेटिव सेगमेंट की मौत करार दिया था. कामथ ने तो यह भी कह दिया था कि स्टॉक ब्रोकर्स के लिए रेगुलेटरी रिस्क ही सबसे बड़ा रिस्क है.</p>
<h3>रुख बदलने से आरबीआई का इनकार</h3>
<p>हालांकि रिजर्व बैंक का कहना है कि करेंसी डेरिवेटिव पर उसके रुख में कोई बदलाव नहीं आया है. सेंट्रल बैंक ने 2014 के एक सर्कुलर का जिक्र कर अपनी इस बात को आधार देने का प्रयास किया है.</p>
<h3>बड़े ट्रेडर्स पर नहीं होगा कोई असर</h3>
<p>आरबीआई का संबंधित सर्कुलर कहता है कि ट्रेडर्स को स्टॉक एक्सचेंज पर करेंसी डेरिवेटिव में ट्रेड करने के लिए संबंधित करेंसी में एक्सपोजर रखने की जरूरत होगी. इस सर्कुलर का एफपीआई जैसे बड़े निवेशकों पर खास असर नहीं होगा, लेकिन खुदरा निवेशकों, प्रोपराइटरी ट्रेडर्स और ब्रोकरेज फर्मों के लिए इसका अनुपालन काफी मुश्किल माना जा रहा है.</p>
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