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<p style="text-align: justify;">1947 में भारत को आजादी मिली और चीन 1949 में एक नए देश के रूप में उभरा. दोनों एक समान चुनौतियों का सामना कर रहे थे. लेकिन आर्थिक मोर्चे पर भारत चीन से कुछ पायदान आगे था. 80 के दशक तक चीन भारत से आगे निकल चुका था लेकिन अभी वह दुनिया के शक्तिशाली देशों में शामिल नहीं हुआ था.</p>
<p style="text-align: justify;">इसके बाद चीन के नेताओं ने कुछ ऐसे फैसले किए कि भारत का ये पड़ोसी मुल्क अब सुपरपावर है. अर्थव्यवस्था के मामले में चीन अब भारत से लगभग चार गुना आगे है. चीन अब दुनिया की फैक्टरी कहा जाता है. </p>
<p style="text-align: justify;">अब सोच रहे हैं कि होंगे कि कम्युनिस्ट-समाजवादी विचारों वाले माओत्से तुंग के देश चीन ने अचानक से तरक्की कैसे कर ली, इसे समझने के लिए आपको एक वहां के एक नेता तंग श्याओ फिंग के फॉर्मूले को समझना होगा. फिंग ने माओ के बाद चीन की सत्ता संभाली थी. फिंग भी चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के ही नेता थे.</p>
<p style="text-align: justify;">तंग श्याओ फिंग ने माओ की सोच से इतर जाकर समाजवादी आर्थिक मॉडल से चीन को मुक्त कर दिया. तंग श्याओ फिंग का मानना था कि बिना पूंजी आए चीन तरक्की नहीं कर सकता है और इसके लिए अर्थव्यवस्था के दरवाजे खोलना होगा. माओ के जिस चीन में विदेशी पूंजी के लिए दरवाजे खोलना किसी बगावत से कम नहीं था, वहां फिंग ने समझाया कि बिल्ली जब तक चूहे का शिकार कर रही है, तब तक इससे फर्क नहीं पड़ता कि वह काली है या सफेद. मतलब जरूरत पूंजी की है और वो देश में किसी भी रास्ते से आए. इस फॉर्मूले को लागू करने के लिए फिंग ने अर्थशास्त्री आर्थर लुईस मॉडल को अपनाया.</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>क्या है ‘लुईस मॉडल'</strong><br />साल 1954 में अर्थशास्त्री विलियम आर्थर लुईस ने "श्रम की असीमित आपूर्ति के साथ आर्थिक विकास" के मॉडल को दिया. लुईस ने बताया कि कृषि के क्षेत्र में श्रम की अधिकता है और कमाई कम है. अगर इस अतिरिक्त श्रम को कुछ ज्यादा पैसा देकर उद्योगों की ओर मोड़ा जाए तो तरक्की लाई जा सकती है.</p>
<p style="text-align: justify;">छोटे-छोटे कस्बों और गांवों में फैक्टरिया खड़ी कर दी जाएं. इनमें काम करने वाले लोगों की जेब में पैसा आएगा तो क्रयशक्ति बढ़ेगी और इससे बाजार में मांग. मतलब फैक्टरियों में बना माल बिकता जाएगा. चीन की भारी-भरकम जनसंख्या खुद अपनी फैक्ट्री में बने माल को बाजार उपलब्ध करा देगी.</p>
<p style="text-align: justify;">लुईस का मॉडल मजदूरी की असीमित पूर्ति से आर्थिक विकास या अर्थव्यवस्था की मान्यता पर आधारित था. इस मॉडल को जिसे पूंजीवादी और जीवन निर्वाह क्षेत्र जैसे दो भागों में बांटा गया. </p>
<p style="text-align: justify;"><strong>आसान शब्दों में समझिए लुईस मॉडल</strong><br />किसी कंपनी में 10 लोगों की जगह 6 लोगों को रखा जाए और उनसे उतना ही काम लिया जाए जितना 10 लोगों से लिया जा रहा था. ऐसे में 4 लोगों को दिया जाने वाला वेतन बचेगा और उस पूंजी को बचाकर दूसरी जगह इस्तेमाल किया जा सकेगा. इस मॉडल का उपयोग करके शेष मजदूरों का उपयोग दूसरे कारखाने बनाकर उनमें काम करवाकर या पुराने उद्योगों का विस्तार करके उनसे उन जगहों पर काम करवाकर किया जा सकता है.</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>चीन ने कैसे किया लुईस मॉडल का उपयोग?</strong><br />चीन लुईस मॉडल का उपयोग करके अपनी अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने वाले देशों में सबसे आगे है. चीन में इस मॉडल का फायदा दो तरह से मिला, पहला अपनी जनसंख्या और दूसरा ग्रामीणों के श्रम का उपयोग करके.</p>
<p style="text-align: justify;">चीन ने इस मॉडल का इस्तेमाल कर घरेलू उद्योगों को बढ़ावा देते हुए अपने बाजार बाजार का विस्तार किया और कम कीमत पर मिलने वाले बेहद जरूरी सामानों का उत्पादन करके निवेशकों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया.</p>
<p style="text-align: justify;">वहीं इस मॉडल का उपयोग करके चीन बुनियादी ढांचे, शिक्षा और अनुसंधान एवं विकास में अधिक निवेश कर पाया जिससे चीन की उत्पादकता एवं प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ावा मिला जिसके बाद देश में तेजी से औद्योगीकरण हुआ, गरीबी में कमी आई और अर्थव्यवस्था में बड़े रूप से बदलाव देखने को मिला. आज चीन अपनी फैक्टरियों से पूरी दुनिया को माल सप्लाई कर रहा है. दुनिया की कई अर्थव्यवस्थाएं उस पर निर्भर हैं.</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>भारत में क्यों नहीं अपनाया गया ये मॉडल</strong><br />आजादी के बाद भारत समाजवादी अर्थव्यवस्था के आधार पर चला. 80 के दशक में चीन ने यहीं से अलग राह पकड़ी थी. हालांकि भारत खेती पर आधारित अर्थव्यवस्था वाला देश आज भी है.</p>
<p style="text-align: justify;">अब सवाल ये उठता है कि भारत में ये मॉडल क्यों नहीं लागू हो पाया. इसकी एक वजह थी कि माओ शासनकाल पूरी तरह तानाशाही पर आधारित था.</p>
<p style="text-align: justify;">द ग्रेट लीप फॉरवर्ड जिसके तहत अंधाधुंध तरीके से औद्योगिकरण किया गया उससे चीन में अकाल पड़ गया. लोगों से खेती छीन ली गई थी जिसकी वजह से अनाज की कमी हो गई.</p>
<p style="text-align: justify;">नतीजा ये रहा कि इस देश में भूख से चार करोड़ मर गए. भारत में उसी समय लोकतंत्र संघर्ष कर रहा था और उसकी जमीन में मजबूत रही थी. किसी भी लोकतांत्रिक देश में इस तरह का अत्याचार करना सरकारों के वश में नहीं होता है.</p>
<p style="text-align: justify;">उधर चीन कराह रहा था. तंग श्याओ फिंग का सुझाया रास्ता भले ही समाजवादी चीन की मिजाज से अलग था लेकिन वहां के लोगों के लिए ये एक नई बात थी. भूखे मरते लोगों को तंग श्याओ फिंग की बात का विरोध करने की ताकत भी नहीं थी. दरअसल चीन माओ के समाजवादी से ऊब चुका था.</p>
<p style="text-align: justify;">लेकिन भारत के हालात चीन से एकदम अलग हैं. यहां पर लुईस का मॉडल लागू नहीं किया जा सकता था. भारत में मानसूनी बारिश यहां की खेती की सबसे बड़ी चुनौती है वहीं चीन में साल भर बारिश होती रहती है. भारत की तुलना में चीन में खेती करना आसान है.</p>
<p style="text-align: justify;">माओ के समाजवादी मॉडल से चीन को फायदा भी हुआ था. 70 के दशक में चीन शिक्षा दर और जीवन प्रत्याशा के मामले में भारत से बहुत आगे निकल चुका था.</p>
<p style="text-align: justify;">आजादी के बाद भारत के सबसे बड़ी समस्या सभी रियासतों और राजाओं को एक करना था. दूसरी ओर चीन के सामने ऐसी कोई समस्या नहीं थी. वह पहले से ही संगठित था.</p>
<p style="text-align: justify;">चीन ने जमीन का बंटवारा करके आर्थिक सुधार किए. जमीन का कोई मालिक नहीं रह गया था. कम्युनिटी फॉर्मिंग की शुरुआत की गई. भारत में खेती को लेकर इस तरह के प्रयोग कभी नहीं किए गए.</p>
<p style="text-align: justify;">चीन ने जहां संगठित खेती के जरिए इसमें अतिरिक्त मजदूरों की पहचान करने में सफल रहा है वहीं भारत में ये प्रयोग कभी हो नहीं पाया. हालांकि भारत में 1991 में आर्थिक सुधारों की शुरुआत हुई लेकिन ये कदम मजबूरी में उठाया गया था.</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>गुजरात है इस मॉडल के नजदीक</strong><br />हालांकि भारत में गुजरात ही एक ऐसा राज्य है जो लुईस मॉडल की राह पर है. यहां मजदूरों की बड़ी संख्या खेती से फैक्टरियों की ओर शिफ्ट हुई है.</p>
<p style="text-align: justify;">हालांकि अभी यहां पर खेतों में काम करने वाले मजदूरों की संख्या का अनुपात पंजाब, हरियाणा, केरल और तमिलनाडु से ज्यादा है. गुजरात में 24 फीसदी मजदूर फैक्टरियों या किसी न किसी रूप में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में काम कर रहे हैं जो कि राष्ट्रीय औसत से दोगुना है. </p>
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