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Ram Aayenge: रामायण और रामचरित मानस हिंदू धर्म का पवित्र ग्रंथ हैं. महर्षि वाल्मीकि ने रामायण और गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रामचरित मानस की रचना गई है. रामचरित मानस में जहां रामजी के राज्यभिषेक तक का वर्णन मिलता है, तो वहीं रामायण में श्रीराम के महाप्रयाण (परलोक गमन) तक का वर्णन किया गया है.
जन्म-मृत्यु के भय को हरण करने वाले रामचंद्र जी के चरित्र को सुनने वाला धन्य हो जाता है. वह सच्चिदानंदघन प्रभु राम के प्रताप को जानकर कृतज्ञ हो जाता है. ठीक ऐसे ही पक्षीराज गरुड़ को भी रामजी की महिमा और रामजी की मंगलमयी कथा को सुनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था. कहा जाता है कि, वाल्मीकि से पहले गिद्धराज गरुड़ ने रामजी की कथा सुनी थी.
राम आएंगे के दसवें भाग में हमने जाना कि, महान महर्षि विश्वामित्र अयोध्या नरेश दशरथ से राम और लक्ष्मण को मांगकर अपने साथ आश्रम ले जाते हैं. इसके बाद विश्वामित्र के आदेश से रामजी द्वारा ताड़का का वध होता है. अब राम आएंगे के अगले भाग में जानेंगे गरुड़राज को किससे मिला रामजी की महिमा सुनने का सौभाग्य.
पार्वतीजी शिवजी से कहती हैं, हे नाथ! आपने रामचरित्र मानस का गान किया, जिसे सुनकर मैंने अपार सुख प्राप्त किया. आपने यह कहा कि यह सुंदर कथा काकभुशुण्डि ने गरुड़ जी से कही थी.
आइये जानते हैं आखिर काकभुशुण्डि कौन हैं, जिसने गरुड़ जी को सुनाई थी राम जी की सुंदर कथा-
सबसे पहले रामजी की कथा भगवान शिव ने माता पार्वती को सुनाई थी. उस कथा को एक कौवे ने भी सुन लिया था. इसी कौवे का पुनर्जन्म काकभुशुण्डि के रूप में हुआ. लोमश ऋषि के श्राप के कारण काकभुण्डि कौवा बने थे और अपना संपूर्ण जीवन कौए के रूप में बिताया. श्राप से मुक्त होने के लिए लोमश ऋषि ने उसे राममंत्र और इच्छामृत्यु का वरदान भी दिया था. काकभुशुण्डि को पूर्वजन्म में भगवान शिव के मुख से सुनी रामकथा याद थी. शिवजी के मुख से निकली राम की इस पवित्र कथा को ‘अध्यात्म रामायण’ के नाम से जाना जाता है.
गरुड़ महाग्यानी गुन रासी। हरि सेवक अति निकट निवासी।
तेहिं केहि हेतु काग सन जाई। सुनी कथा मुनि निकर बिहाई॥2॥
पार्वती जी भगवान शिव से कहती हैं, गरुड़जी तो महान ज्ञानी, सद्गुणों की राशि, श्री हरि के सेवक और उनके अत्यंत निकट रहने वाले हैं. उन्होंने मुनियों के समूह को छोड़कर कौए से जाकर राम कथा किस कारण सुनी.
आइए जानते हैं गरुड़जी ने आखिर कब और कैसे सुनी काकभुशुण्डि (कौए) से रामजी कथा-
रावण के पुत्र मेघनाथ और राम के बीच युद्ध हो रहा था. युद्ध के दौरान मेघनाथ ने राम को नागपाश से बांध दिया था. उस समय देवर्षि नारद के कहने पर पक्षीराज गरुड़ ने नागपाश के समस्त नागों को खाकर रामजी को नागपाश के बंधन से मुक्त किया. रामजी को इस तरह से नागपाश में बंधा होने के कारण गरुड़ को रामजी के भगवान होने पर संदेह हो गया. तब गरुड़ का संदेह दूर करने के लिए देवर्षि नारद ने गरुड़ को ब्रह्मजी के पास, ब्रह्माजी ने शिवजी के पास और शिवजी ने काकभुशुण्डि के पास भेजा.
मिलहिं न रघुपति बिनु अनुरागा। किएँ जोग तप ग्यान बिरागा॥
उत्तर दिसि सुंदर गिरि नीला। तहँ रह काकभुसुण्डि सुसीला।।1।।
शिवजी गरुड़ से बोले, बिन प्रेम के सिर्फ योग, तप, ज्ञान और वैराग्य आदि के रघुपति नहीं मिलते. इसलिए तुम उत्तर दिशा में एक सुंदर नील पर्वत है, वहां परम सुशील काकभुशुण्डि रहते हैं.
राम भगति पथ परम प्रबीना। ग्यानी गुन गृह बहु कालीना॥
राम कथा सो कहइ निरंतर। सादर सुनहिं बिबिध बिहंगबर।।2।।
अर्थ है, वो रामभक्ति के मार्ग में परम प्रवीण हैं, ज्ञानी हैं, गुणों के धाम हैं और बहुकालीन हैं. वो हमेशा रामचंद्र की कथा करते हैं, जिसे भांति-भांति के श्रेष्ठ पक्षी आदर से सुनते हैं.
जाइ सुनहु तहँ हरि गुन भूरी। होइहि मोह जनित दुख दूरी॥
मैं जब तेहि सब कहा बुझाई। चलेउ हरषि मम पद सिरु नाई॥3॥
अर्थ है: वहां जाकर हरि के गुण समूहों को सुनो. उसके सुनने से मोह से उत्पन्न तुम्हारा दुख दूर होगा. मैंने उसे जब सब समझाकर कहा तब वो मेरे चरणों में सिर नवाकर हर्षित होकर चला गया (शिवजी पार्वती से कहते हैं).
ताते उमा न मैं समुझावा। रघुपति कृपाँ मरमु मैं पावा॥
होइहि कीन्ह कबहुँ अभिमाना। सो खोवै चह कृपानिधाना॥4॥
अर्थ:- शिवजी कहते हैं, हे उमा! मैंने उसको (गरुड़) इसलिए नहीं समझाया क्योंकि मैं रघुनाथजी की कृपा से उसका मर्म पा गया था. उसने पूर्व में अभिमान किया होगा, जिसे कृपानिधान रामजी नष्ट करना चाहते हैं.
प्रभु अवतार कथा पुनि गाई। तब सिसु चरित कहेसि मन लाई।।
इसके बाद काकभुशुण्डि ने प्रभु के अवतार की कथा का वर्णन किया और मन लगाकर रामजी की बाल लीलाएं कहीं. इस तरह से गरुड़राज ने काकभुशुण्डि के मुख से रामजी के चरित्र की पवित्र कथा सुनी और उनका संदेह दूर हुआ.
(राम आएंगे के अगले भाग में जानेंगे काकभुशुण्डि ने गरुड़ से किस प्रकार किया रामजी की बाल लीलाओं का वर्णन)
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