[ad_1]
Generic Drug : आजकल बीमारी शारीरिक रूप से ही नहीं आर्थिक रूप से भी तोड़ रही है. दवाईयां इतनी ज्यादा महंगी हो गई हैं कि जेब पर भारी पड़ने लगी है. लोगों को महंगी दवाइयों से छुटकारा दिलाने के लिए सरकार जेनेरिक दवाइयों के इस्तेमाल पर जोर दे रही है. सस्ती जेनेरिक दवाइयों (Generic Drug ) के प्रति जागरूक किया जा रहा है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि जेनेरिक दवाईयां क्या होती हैं, ये इतनी सस्ती क्यों आती हैं और ब्रांडेड दवाइयों से कितनी अलग होती हैं. अगर नहीं तो चलिए जानते हैं…
जेनेरिक दवा क्या होती है
फार्मेसी बिजनेस में जेनेरिक दवाईयां उन्हें कहा जाता है, जिनका अपना कोई ब्रांड नाम नहीं होता है. ये अपने सॉल्ट नेम से बेची और पहचानी जाती हैं. कुछ कंपनियां जो जेनेरिक दवा बनाती हैं, उन्होंने अपना ब्रांड नाम भी बना लिया है लेकिन बावजूद इसके जेनेरिक दवाईयों की श्रेणी में आने की वजह से ये दवाएं काफी सस्ती होती हैं. सरकार भी जेनेरिक दवाओं को प्रोमोट करने का काम कर रही है. प्रधानमंत्री जन औषधी परियोजना के तहत देशभर में जेनेरिक दवाओं के स्टोर खुल रहे हैं.
जेनेरिक दवाईयां कितनी असरदार हैं
ब्रांडेड दवाओं की तरह ही जेनरिक दवाईयां भी असर करती हैं. इन दवाओं में भी ब्रांडेड कंपनियों की दवा वाला सॉल्ट होता है. जब ब्रांडेड दवाओं का सॉल्ट मिश्रण का फार्मूले और उसके प्रोडक्शन का एकाधिकार समय समाप्त हो जाता है, तब वह फॉर्मूला सार्वजनिक हो जाता है. इसी फॉर्मूले और सॉल्ट का इस्तेमाल कर जेनरिक दवाईयां बाई जाती हैं. चूंकि इन दवाओं को भी उसी स्टेंडर्ड पर बनाया जाता है, इसलिए क्वालिटी में ये ब्रांडेड दवाओं से कम नहीं होती हैं.
जेनेरिक दवाईयां इतनी सस्ती क्यों मिलती हैं
एक्सपर्ट्स का कहना है कि, जेनेरिक दवाओं के सस्ती होने के पीछे एक नहीं कई कारण हैं. पहला इसे बनाने में रिसर्च और डेवलपमेंट के लिए कंपनी को खर्च नहीं करना पड़ता है. क्योंकि किसी भी दवा को बनाने में सबसे बड़ा खर्च इसी में होता है. यह काम पहले ही दवा खोजने वाली कंपनी की तरफ से पूरी हो चुकी होती है. दूसरा कारण इसका प्रमोशन नहीं करना पड़ता है, जिसका पैसा भी बचता है.तीसरा जेनेरिक दवाओं की पैकेजिंग पर कोई खास खर्च नहीं होता है. चौथा इन दवाओं का प्रोडक्शन बड़े पैमाने पर होता है. मास प्रोडक्शन की वजह से ये सस्ती मिलती हैं.
जेनेरिक और ब्रांडेड दवाईयों में फिर क्या अंतर है
अगर किसी दवा को बड़ी कंपनी बनाती है तो वह ब्रांडेड बन जाती है और अगर उसी को छोटी कंपनी बना दे तो इसे जेनेरिक दवाई कहा जाता है. हालांकि, दोनों में बहुत ज्यादा अंतर नहीं होता है. सिर्फ नाम, ब्रांड, ब्रांडिंग, पैकेजिंग, स्वाद और रंगों का अंतर हो सकता है. एक्सपर्ट्स के मुताबिक, दवाईयां मॉलिक्यूल्स और सॉल्ट से बनाई जाती है, इसलिए जब भी दवा खरीदें तो उसके सॉल्ट पर ध्यान देना चाहिए न कि ब्रांड और कंपनी पर.
Disclaimer: इस आर्टिकल में बताई विधि, तरीक़ों और सुझाव पर अमल करने से पहले डॉक्टर या संबंधित एक्सपर्ट की सलाह जरूर लें.
यह भी पढ़ें
Check out below Health Tools-
Calculate Your Body Mass Index ( BMI )
[ad_2]
Source link