अफगानिस्तान: ‘साम्राज्यों की कब्रगाह’ से आई टीम जिसने तीन विश्वविजेताओं को धूल चटा दी

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अफगानिस्तान की टीम ने इस बार के वनडे वर्ल्ड कप में कमाल का प्रदर्शन किया है. 30 अक्टूबर को हुए अफगानिस्तान और श्रीलंका के मैच में अफगानिस्तान ने धमाकेदार अंदाज में श्रीलंका को 7 विकेट से हरा दिया और इसके साथ ही मौजूदा वर्ल्ड कप में ये अफगानिस्तानी टीम की तीसरी जीत है. 

इस वर्ल्ड कप में इस टीम के गेंदबाज और बल्लेबाज बेहतरीन फॉर्म में चल रहे हैं. वनडे वर्ल्ड कप 2023 में अफगानिस्तान ने अब तक 6 मुकाबले खेले हैं जिसमें से तीन में इस टीम की जीत हुई है और 6 अंकों के साथ अफगानिस्तानी टीम प्वाइंट्स टेबल में पांचवें नंबर पर है. उधर श्रीलंका के लिए अब सेमीफाइनल का रास्ता मुश्किल हो गया है. 

अफगानिस्तान ने अपने इस बार के प्रदर्शन से न सिर्फ सबको चौंका दिया है बल्कि खेल जगत को एक वॉर्निंग भी दे दी है कि अब उसे कमजोर टीम समझने की गलती न की जाए. 

हालांकि यह पहला मैच नहीं है, जिसमें अफगानिस्तान टीम ने अपने प्रदर्शन से सबको हैरान कर दिया है. इससे पहले भी इसी टीम ने वर्ल्ड कप से इतर पाकिस्तान, श्रीलंका और वेस्टइंडीज जैसी बड़ी टीमों को शिकस्त दी है. अफगानिस्तानी क्रिकेट टीम बांग्लादेश और जिम्बाब्वे को भी कई मुकाबलों में करारी शिकस्त दे चुकी है.

ऐसे में इस रिपोर्ट में जानते हैं कि आखिर अफगानिस्तान में क्रिकेट की शुरुआत कैसे हुई और अब तक इस टीम का सफर कैसा रहा है. 

वनडे वर्ल्ड कप 2023 में अफगानिस्तानी टीम का ऐसा परफॉर्मेंस इस देश के लिए कोई छोटी उपलब्धि नहीं है. क्योंकि अफगानिस्तान एक ऐसा देश रहा है जहां क्रिकेट को लोकप्रिय खेल बनने में दशकों लग गए और यहां के लोग सालों से युद्ध की विरासत से जूझ रहे हैं.

बता दें कि अफगानिस्तान में क्रिकेट का इतिहास साल 1839 से माना जाता है, उस वक्त ब्रिटिश सैनिकों ने काबुल में कुछ मैच खेले थे. लेकिन इस देश में साल 1990 के दशक तक अशांति का माहौल था. ऐसे में यहां क्रिकेट जैसा खेल खेलना आसान नहीं था. इसी बीच पाकिस्तान पहुंचे अफगान शरणार्थियों ने हिम्मत दिखाई और साल 1995 में अफगानिस्तान क्रिकेट बोर्ड का गठन किया.

कहां से शुरू हुई इस क्रिकेट की कहानी

द हार्ट ऑफ एशिया के नाम से मशहूर देश अफगानिस्तान का इतिहास काफी शानदार था लेकिन अठारहवीं शताब्दी में इस देश को किसी की ऐसी नजर लगी अफगानिस्तान आज भी उससे उबर नहीं पाया है.

दरअसल अठारहवीं शताब्दी में अफगानिस्तान पर दुर्रानी साम्राज्य का शासन था. इसके बाद उन्नीसवीं सदी के तीसरे दशक में लगभग आधे विश्व पर अपना प्रभाव रखने वाली ब्रिटिश हुकूमत की नजर अफगानिस्तान पर पड़ी और साल 1878 यानी दुसरे इंडो अफगान युद्ध के साथ ही अंग्रेज ने इस देश पर अपना अधिकार जमा लिया.

कहा जाता है कि अफगानिस्तान में क्रिकेट ने अंग्रेजो के हुकुमत से पहले यानी पहले एंग्लो अफगान युद्ध के दौरान ही (1839) दस्तक दे दी थी. लेकिन अन्य देशों की तरह क्रिकेट यहां इतना मशहूर नहीं हो पाया. 

भारत- पाकिस्तान से प्रभावित हुआ अफगानिस्तान

साल 1932 में भारत में पहली बार अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट खेला गया. ब्रिटिश हुकूमत में रहते हुए भारत पहला ऐसा एशियाई देश बन गया जिसने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में पदार्पण किया हो. इसके ठीक 20 साल बाद पाकिस्तान को भी अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट खेलने वाले देशों में शामिल कर लिया गया था.

जिसका मतलब है कि अफगानिस्तान के दो करीबी पड़ोसी देशों में उस वक्त क्रिकेट प्रेम परवान चढ़ने लगा था. यही कारण रहा कि इस देश के लोगों के अंदर भी क्रिकेट खेलने की इच्छा जागने लगी थी. हालांकि संसाधन और परिस्थिति को देखते हुए इस खेल में आगे बढ़ने का विचार दूर दूर तक किसी के मन में भी नहीं था.

अफगानिस्तान को साल 1926 में एकीकृत स्वतंत्र देश का दर्जा मिल गया था लेकिन उस वक्त तक देश में आतंक और भुखमरी का साया काफी बढ़ चुका था. युद्ध के माहौल से तंग आकर सत्तर के दशक में  बहुत सारे अफगानिस्तानी लोगों ने पाकिस्तान की तरफ पलायन किया और पाकिस्तान में शरणार्थी की तरह रहने के दौरान ही इन अफगानों की मुलाकात एक बार फिर क्रिकेट से हुई. 

पाकिस्तान में रहते हुए अफगानों ने मनोरंजन के लिए अपने अपने शिविरों में क्रिकेट खेलना शुरू किया लेकिन वो लोग अपने देश में इस खेल को आगे बढ़ाने के बारे में नहीं सोच सकते थे.

अब तालिबान के डर से नब्बे के दशक में एक बार फिर अफगानिस्तानी लोगों के पलायन का सिलसिला शुरू हुआ लेकिन इन बार यह सफर अफगानिस्तान को एक नई राह की तरफ ले जाने वाला था.

क्रिकेट के प्रति अफगानों में जगा प्रेम 

दरअसल साल 1992 में जब पाकिस्तान ने पहली बार क्रिकेट विश्व कप जीता तो देश की हर गली में क्रिकेट के दीवानों ने इस खेल को खेलना शुरु कर दिया. उस वक्त पाकिस्तान के हर सड़क हर गली में क्रिकेट मैच खेला जाने लगा. 

पाकिस्तान की गलियों से यह खेल उन शिविरों तक भी पहुंचा जहां अफगान शरणार्थी रहते थे. बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार उस वक्त अफगान राष्ट्रीय टीम के शुरुआती बल्लेबाजों में से एक, करीम सादिक भी पाकिस्तानी कैंप, काचा कारा में रहते थे. उन्होंने शिविर में ही पहली बार इस खेल को खेलना शुरू किया था. इस नए खेल के लिए शिविर के युवाओं में इतना उत्साह था कि करीम रात में माचिस फैक्ट्री में काम करते थे और दिन में क्रिकेट खेलते थे.

अफगान शिविर काचा कारा में ही साल 1995 में क्रिकेट बोर्ड का गठन करने वाले ताज मल्लिक भी रहते हैं. क्रिकेट को लेकर उनमें भी वही जनून दिखा. आगे जानकर ताज मलूक ने ही अफगान राष्ट्रीय क्रिकेट टीम की स्थापना की और उन्हें ही अफगानिस्तान क्रिकेट का जनक भी कहा जाता है. 

ताज मलूक ने साल 2014 में बीबीसी को दिए एक इंटरव्यू में कहा था, ‘मुझे याद है उस वक्त हम कच्चा कारा शिविर में रह रहे थे और मैं अपने तीन भाइयों के साथ क्रिकेट खेला करता था, हम क्रिकेट के दीवाने थे, हर अंतरराष्ट्रीय मैच पर नजर रखते थे.’ 

उन्होंने आगे कहा उस वक्त मैं सोचता था कि अगर हम क्रिकेट खेलते रहेंगे तो हमारे पास अपने देश का प्रतिनिधित्व करने वाली एक राष्ट्रीय टीम होगी. यही कारण था कि मलूक अच्छे खिलाड़ियों की तलाश में अफगानिस्तान के विभिन्न शिविरों में जाने लगे, और उन अफगानों के बीच प्रतिभा की तलाश की, जिन्हें क्रिकेट से प्रेम था. 

मलूक ने बीबीसी के उसी इंटरव्यू में कहा कि, ‘हमने एक अच्छी टीम बनाने का सोच तो लिया था लेकिन ये इतना भी आसान नहीं था. मैं हर उस अफगान खिलाड़ी के पास गया, जिसे मैं जानता था और उन्हें काबुल आने के लिए प्रोत्साहित करने लगा. लेकिन उनके पिताओं ने मुझे ऐसा न करने की चेतावनी दी. उन्होंने मुझसे कहा कि क्रिकेट उनके बेटों का समय खराब कर रहा है.” 

खाने के लिए पैसे नहीं, परिवार का दवाब

बीबीसी को दिए एक इंटरव्यू में अफगानिस्तानी बल्लेबाज करीम सादिक की भी कुछ ऐसी ही यादें हैं. वह कहते हैं, ”हमारे पास खाने के लिए भी पैसे नहीं थे, इसलिए मैं अपने परिवार के दबाव में था क्योंकि मैं कमा नहीं रहा था.”

खैर तमाम अड़चनों से बाद भी मल्लिक ने साल 1995 में इतने लोगों को जोड़ लिया था कि अफगानिस्तान क्रिकेट को एक कदम आगे बढ़ाने के लिए काफी थे. मल्लिक टीम बनाने के अपने निश्चय पर दृढ़ रहे और साल 1995 को काबुल में अफगान क्रिकेट फेडरेशन की स्थापना की गई. 

अब क्रिकेट फेडरेशन की स्थापना तो हो चुकी थी लेकिन तालिबान के प्रतिबंधों के कारण अफगानिस्तान को यहां क्रिकेट खेलने में परेशानी होनी शुरू हो गई. उस वक्त भारत से सबसे अच्छे संबंध होने के कारण बीसीसीआई ने उनकी मदद की. 

धीरे धीरे तालिबान सरकार ने भी देश में क्रिकेट को लेकर रियायतें देनी शुरू कर दी और साल 2000 में पहली बार अफगानिस्तान की क्रिकेट टीम का गठन हुआ. जिसे एक साल बाद ही अमेरिका के दखल के बाद देश को तालिबान से मुक्ति मिलने के साथ आईसीसी की एफिलिएट सदस्यता दे दी. 

2004 में अफगानिस्तान ने एशियन क्रिकेट काउंसिल ट्रॉफी में हिस्सा लिया 

आईसीसी से मंजूरी मिलने के बाद साल 2003 में इस देश को एशियन क्रिकेट काउंसिल ने भी अपने साथ जोड़ लिया और एक साल बाद ही यानी 2004 में अफगानिस्तान ने एशियन क्रिकेट काउंसिल ट्रॉफी में भी हिस्सा लिया जो कवालालाम्पुर में खेली गई थी. इस मैच में अफगानिस्तान ने मलेशिया को हराकर पहली बार चर्चा का विषय बना था. 

अफगानिस्तान की टीम ने साल 2006 में इंग्लैंड का दौरा किया जहां इस टीम ने सात में से 6 मैच अपने नाम किए थे. हैरानी की बात तो ये है कि इन 6 मैचों में से तीन मैच ग्लेमोरगन, लंकाशायर और एसेक्स जैसी बड़ी टीमों के खिलाफ खेले गए थे. 

इसके बाद अफगानिस्तान टीम ने साल 2007 में एसीसी टी20 कप के तौर पर ओमान को हराकर अपना पहला टूर्नामेंट टाइटल हासिल किया था.

तीन बार वर्ल्ड कप में ले चुकी है हिस्सा 

अफगानिस्तान ने वनडे वर्ल्ड कप साल 2015 और 2019 में हिस्सा लिया था, लेकिन इन दोनों बार टीम सेमीफाइनल तक नहीं पहुंच पाई थी. इस वर्ल्ड कप से पहले अफगानिस्तान ने वर्ल्ड कप 2015 में केवल स्कॉटलैंड को हराया था. हालांकि इस बार टीम अलग ही लय में नजर आई और अभी तक तीन मुकाबले जीत लिए हैं और टीम सेमीफाइनल में भी पहुंच सकती है.

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